मनोहारी कलाकृतियाँ बनाने मे माहिर अदभुत प्रतिभा के धनी राजेश सोनी

रतलाम -मध्यप्रदेश प्रान्त की पावन वसुन्धरा पर स्थित धर्म प्राण नगरी रतलाम में एक ऐसी अदभुत प्रतिभा है जो एक नही अनेकानेक कलाकृतियों को बना चुके है। कहते है लोग आते है जहाँ में ओर  चले जाते हैं  लेकिन कुछ लोग इतिहास बना कर जाते हैं
किसी भी कलाकार के हाथों मे कला, सरस्वती से प्राप्त वरदान होता है। एक कलाकार अदृश्य शक्ति के साथ अपनी लगन व रात दिन के अथक प्रयास से नायाब कलाकृति तराश देता है।

 कई कलाकार ऐसे भी है जो बिना किसी सहारे या परामर्श के अपनी लगन से अपने हुनर में पारंगत हो जाते हैं ऐसे ही एक बिरले कलाकार हैं रतलाम के राजेश सोनी, जो अपनी लगन व रात दिन के अथक प्रयास से आज ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं जहाँ उनका नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। ऐसे ही शख्सियत है राजेश सोनी
ऐसे कलाकार है जिनके हाथ में दुर्लभ कला आकर विराजमान हुई। आज राजेश सोनी एक ऐसे मिशन पर है जो अपने आप में मायने रखता है। अपनी जादुई कला से वह जीते जागते इंसान की धातुओं से निर्मित कलाकृति बना डालते हैं। उनकी कलाकृति स्वतः बोलने लगती है। 

अब वे अपनी कलाकृतियों में ऋषि मुनि और संतों की कलाकृतियां बनाने में लगे हैं। 
मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में करमदी तीर्थ में श्री शत्रुंजय तीर्थ स्थल के पुन: नवनिर्माण का काम परम पूज्य  आचार्य श्री  अशोकसागर सूरी जी महाराज की निश्रा तथा मुनि श्री धैर्यचंद्र सागर जी म सा और श्री सोमचंद्र चंद्र सागर जी के निर्देशानुसार अंतिम चरणों में चल रहा है।

 नूतन श्री शत्रुंजय तीर्थ धाम में झरने वाली गुफा के लिए स्वर्ण पंचरंगी कलाकृति बनाई जा रही हैं। इसमें नवकार महामंत्र, आचार्य सागरानंद सूरिश्वर जी, आचार्य धर्म सागर जी और आचार्य अभय सागर जी की कृति हाथों से बनाई जा चुकी है।

20 सालों से नक्काशी व थेवा ज्वेलरी का काम कर रहे श्री राजेश सोनी अपने परिवार के पांच सदस्यों के साथ मिलकर इन कृतियों को अंतिम रूप देने में लगे रहे। विगत 80 दिनों में प्रतिदिन 15 घंटों तक  काम कर इस कृति को तैयार कर चुके हैं।

 नवकार महामंत्र की 6 फुट बाय 4 फुट तथा आचार्यश्री की कलाकृति 8 बाय 4 की बनाई गई हैं। 
नवकार महामंत्र में अष्ट मंगल, 10 इंद्र, कल्प वृक्ष बनाए गए हैं। आचार्य सागरानंद सूरिश्वर जी, आचार्य धर्म सागर जी और आचार्य अभय सागर जी की कृति के साथ-साथ मांडव में स्थित जैन तीर्थ, नागेश्वर पार्श्वनाथ, पालीताना के भगवान आदिनाथ की कृति निर्मित की जा चुकी है। 
निर्माण हेतु चांदी, सोने और अमेरिकन डायमंड उपयोग में लिए गए हैं।
राजेश सोनी ने बताया इन कृतियों को बनाने में कठोर धातु के साथ-साथ चांदी, सोने का उपयोग किया गया है। इनमें 2000 अमेरिकन डायमंड, 5000 कुंदन वर्क के पीस का उपयोग किया गया। 
कलाकृति हेतु अमेरिकन डायमंड गुजरात के सुरत शहर से तथा मीना की कारीगरी जयपुर से मंगवाई गई है। इतनी बड़ी कृति संभवत: भारत वर्ष में पहली बार यहां रतलाम में बन रही है।
यह समस्त जानकारी समाज सेवी राजेश गोटिकर रतलाम  ने राष्ट्रीय संवाद दाता पारस जैन पार्श्वमणि कोटा को दी।
 प्रस्तुति 
राष्ट्रीय संवाददाता पारस जैन पार्श्वमणि कोटा राजस्थान
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