इच्छाओं का निरोध करना ही उत्तम तप है - ऐलकश्री सिद्धांत सागर

सचिन मोदी खनियांधाना-इच्छा के निरोध करने का नाम तप है , शांतिपूर्वक दुख सहन करना, किसी जीव की हिंसा ना करना सबसे बड़ा तप है तथा दया समस्त तपों का सार है ।  दूसरे लोगों के लिए तपस्या करना अथवा स्वर्ग के ऐश्वर्य को प्राप्त करने के लिए तपस्या करना निरर्थक है क्योंकि स्वर्ग का ऐश्वर्य पाकर मद भुलाना सबसे कठिन काम होता है। अपनी गलती स्वीकार करना सबसे बड़ा तप है ,   तप भावना से करना चाहिए कामना से नहीं कामना से किया हुआ तप लक्ष्य शून्य होता है । जिस प्रकार से सोने को आग में पिघलाते हैं तो वह अधिक तेज हो जाता है, उसका रंग उज्जवल हो जाता है उसी प्रकार तपस्वी जितने कष्ट सहन करता है, उतना ही भावों से निर्मल होता है।
यह प्रवचन  खनियाधाना में जैन समाज द्वारा मनाए जा रहे दशलक्षण महा महा पर्व के अंतर्गत सातवें दिन उत्तम तप धर्म की व्याख्या करते हुए श्री पार्श्वनाथ दिगं. जैन बड़ा मंदिर जी में विराजमान ऐलकश्री सिद्धांत सागर जी महाराज ने व्यक्त किए । उत्तम तप के विषय में बताते हुए उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने तप करके शक्तियां व सिद्धियां प्राप्त कर ली हैं वे मृत्यु पर भी विजय प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। दूसरों की विनय करना सबसे बड़ा तप है। ज्ञानार्जन करने के लिए साधना करना किसी तपस्वी की साधना करने से भी कम नहीं है। ज्ञानार्जन  के लिए वर्षों तक साधना करनी पड़ती है। जो स्वाध्याय कि सतत साधना करते हैं एक दिन वह अधिकृत विद्वान बन जाते हैं। मुसीबतों में रोने वाला दुनिया का सबसे बड़ा कायर माना जाता है किंतु मुश्किलों में मुस्कुराने वाला साधना सिद्ध पुरुष माना जाता है। तप में अनंत शक्तियां होती हैं ।

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