मुनिश्री ने रात्रि भोजन के त्याग के जैन दर्शन को वैज्ञानिक धर्म बताया, फायदे भी गिनाए

दमोह-श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्वशांति महायज्ञ जबलपुर नाका जैन मदिर में आयोजित हो रहा है। विधान के विधानाचार्य एवं जैन ज्योतिष विद्या अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ अभिषेक जैन एवं डॉ. आशीष जैन ने विधान के छटवें दिन 256 अर्घ चढाए समर्पित करवाए। इससे पूर्व सिद्धचक्र महामंडल विधान में सुबह जिनाभिषेक के बाद शांतिधारा की गयी
आयोजन में मुनि श्री 108 प्रबुद्ध सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए रात्रि में भोजन न करने के फायदों को बताया। मुनि श्री ने कहा कि मनुष्य अगणित जड़ द्रव्यो का भक्षण करता है। जिसका कारण केवल क्षुधा रोग है। जैन दर्शन में क्षुधा को रोग बताया और उसके उपाय कैसे कर सकता है। इसके संबंध में भी बताया। मनुष्य को भोजन कब और कैसे करना चाहिए। इस तथ्य को प्रकाशित करते हुए उन्होंने रात्रि भोजन के त्याग के जैन दर्शन को वैज्ञानिक धर्म बताया एवं रात्रि में भोजन न करने से मनुष्य को होने वाले विभिन्न फायदों के संबंध में जानकारी दी। जिसके प्रभाव से वहां पर मौजूद अनेक श्रावक श्राविकाओं ने रात्रि भोजन का आजीवन त्याग किया। सुधीर विद्यार्थी ने बताया कि जबलपुर नाका श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर में चल रहे सिद्धचक्र महामण्डल विधान का समापन 12 फरवरी को होगा।

मैना सुंदरी नाटिका का आयोजन हुआ
विधानाचार्य डॉ. अभिषेक जैन एवं डॉ. आशीष जैन ने बताया कि विधान के छटवें दिन रात्रि में मैना सुंदरी नामक नाटिका का आयोजन किया गया। इस नाटिका के माध्यम से सिद्धचक्र की प्रथम आराधना जैनो के बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के शासन काल से मैना सुंदरी ने की थी। जैन आगम के अनुसार तीर्थकंरों की जन्म गणना के अनुसार आज से लगभग 65 लाख 97 हजार 718 वर्ष पहले सिद्ध अष्टक किया गया था। जिसके प्रभाव से सिद्ध यंत्र के जल अर्थात गंधोदक से मैना सुंदरी ने श्रीपाल सहित 700 कुष्ठियों का कुष्ठरोग दूर किया था।
          संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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