ग्वालियर-मध्यप्रदेश सरकार स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत करने के लिए जी जान लगा रही है और पूरा प्रदेश डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है, प्रदेश में कई बार ये मामला बहुत ही चर्चा में रहा है कि शासकीय सेवा में कार्ययरत डॉक्टर अपने या किसी निजी चिकित्सालय में अपनी सेवाएं नहीं देगा यानी सीधे तौर पर कहा जाए तो डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस बंद करनी होगी । ऐसे में कई डॉक्टर ने अपनी नौकरी से स्वेच्छा सेवानिवृत्त भी हो लिए थे तो सरकार सकते में आ गई। इसके बाद सरकार ने आदेश जारी कर कहा कि शासकीय सेवा समय पश्चात कोई भी डॉक्टर अपनी सेवाएं निजी तौर पर दे सकता है । साथ ही सरकार ने प्राइवेट प्रैक्टिस या NPA में से किसी एक को चुनने को भी कहा जिसका पालन डॉक्टरों ने किया भी ।
नियम बनाने वाले डॉक्टर किससे लेंगे अनुमति-अभी हाल ही मैं गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय ग्वालियर के डीन डॉ एस एन अयंगर ने कॉलेज के सभी डॉक्टरों को आदेशित किया है कि यदि कोई डॉक्टर किसी निजी अस्पताल में किसी मरीज का इलाज करता है तो उसे डीन से अनुमति प्राप्त करनी होगी ,इतना ही नहीं अनुमति भी case-by-case अनुमति का उल्लेख किया है ।एक और बिंदु के माध्यम से सभी डॉक्टरों को कहा गया है कि यदि कोई मरीज कॉलेज या सरकारी अस्पताल में पंजीकृत है तो उसका इलाज किसी भी निजी अस्पताल में इलाज कोई भी शासकीय डॉ. नहीं कर सकता है ।
ऐसे में सवाल का जबाव मिल पाना मुश्किल है कि यदि डॉ. डीन से अनुमति ले भी लेंगे लेकिन आदेश देने वाले डीन किससे अनुमति लेंगे । और यदि प्राइवेट प्रैक्टिस बंद कराने के आदेश दिए गए तो कुछ डॉक्टर नौकरी भी छोड़ सकते हैं और ऐसा हुआ तो पहले से डॉ की कमी से जूझ रहे अस्पताल खुद बीमार पड़ जाएंगे साथ ही इतनी बडी संख्या में आने वाले सभी मरीजों को सरकारी अस्पताल में बेहतर सुविधाएं मिल सकें इसकी गारंटी न के बराबर है ।
शासकीय डॉक्टर जो करते हैं प्राइवेट प्रैक्टिस-नियमों की धज्जियाँ उड़ाने वाले लोगों में सबसे पहले नज़्म आता है मेडिकल कॉलेज के डीन एस एन अयंगर, सूत्र बताते हैं इनके पास OPD के लिए भले ही समय न हो लेकिन दिनभर में करीब 200 मरीज निजी क्लीनिक पर देखते हैं इतना ही नहीं इन मरीजों में 70 फीसदी मरीज शासकीय अस्पताल के मरीज होते हैं, साथ ही स्वयं के MRI सेंटर भी संचालित हो रहे हैं, ऐसे में एक महत्वपूर्ण सवाल है कि डीन प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए किससे अनुमति लेंगे या फिर खुद ही नियमों की धज्जियाँ उड़ाएंगे ।
ऐसे डॉ की सूची मेडिकल कॉलेज में बहुत लंबी है-
ऑर्थोपेडिक्स के विभागाध्यक्ष डॉ समीर गुप्ता जो ट्रॉमा सेंटर के हेड होने के नाते 24x7 निजी क्लीनिक और सर्वोदय अस्पताल पर अपनी सेवाएं देने में व्यस्त हैं और डीन के अलावा जिम्मेदार लोगों की आंखों पर काली पट्टी बंधी हुई है । डॉ अचल गुप्ता सर्जन विभागाध्यक्ष हैं जो SM हॉस्पिटल संचालित कर रहे हैं जो कि डिस्पेंसरी के सामने ही है । डॉ. राजबीर बाजौरिया नाममात्र की उपस्थिति सरकारी अस्पताल को देते हैं और आयुष्मान अस्पताल, इंडस हॉस्पिटल को सेवाएं दे रहे हैं ।
डॉ धर्मेंद्र तिवारी,डॉ. संजय धवले डॉ अजयपाल, डॉ नामधारी हॉस्पिटल कैंपस में प्रतिदिन सरकारी आवास पर मरीजों की लंबी भीड़ का उपचार कर रहे हैं शायद उन्हें डीन के पास दिन भर में 500 बार डीन के पास अनुमति के लिए जाना होगा । डॉ दिनेश उदैनिया न्यूरोसर्जन बिरला अस्पताल से हर माह लाखों की मलाई खा रहे हैं । डॉ. अरविन्द गुप्ता न्यूरोसर्जन, डॉ सचिन जैन हड्डी रोग कल्याण अस्पताल, डॉ आनंद शर्मा न्यूरोसर्जन, डॉ. अविनाश शर्मा जनक हॉस्पिटल, डॉ आदित्य श्रीवास्तव जनक हॉस्पिटल, डॉ कोठारी जनक हॉस्पिटल, डॉ माथुर ,डॉ समीर गुप्ता पीडियाट्रिक सर्जन आरोग्य धाम, और कितने नाम है जो निजी अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं ।
सवाल ये उठ रहा है कि उनका क्या जो NPA भी ले रहे हैं और प्राइवेट प्रैक्टिस भी ,जिनमें डॉ सचिन जैन का नाम है जिन्होंने विगत 6 वर्षों से लगातार NPA ली है, क्या डीन रिकवरी करा पाएंगे या फिर अपनों पे रहम होता रहेगा । सरकार के इस आदेश का क्या पालन होगा ,कौन करेगा या फिर जिन्होंने आदेश बनाए वही इसकी धज्जियाँ उड़ाएंगे इन सवालों के जबाव भविष्य के गर्त में है लेकिन इस पर अमल होना थोड़ा मुश्किल है आदेश देने वाले और अनुमति लेने वाले दोनों के लिए ।