जो अधिक भक्ति-चापलूसी करता है उसमें कोई रहस्य अवश्य छुपा रहता है:दया सागर जी

बंडा-संसार धूप-छांव के समान है, इस संसार में कभी सुख तो कभी दुख, इस संसार की विडंबना दो शब्दों में ही समावेशित है, सुख और दुख, हमारे मन के अनुसार कार्य सिद्ध हो जाए। हमारी इच्छा अनुसार हमें पंचेन्द्रियों के विषय पदार्थ प्राप्त हो जाए, हमारी आज्ञा का पालन करने वाले हमारे आगे पीछे घूमने लगे, या यह समझ लो आज की सीधी भाषा में हमारी चापलूसी करने वाले प्राप्त हो जाएं यानी कि हमारी हां में हां करने वाले प्राप्त हो जाए तो हमें सुख का अनुभव होने लगता है, लेकिन यह पता नहीं है कि यह सुख हमारे लिए स्थाई है या नहीं। यह बात बंडा के नेमिनगर में विराजमान बाल ब्रह्मचारी आचार्य श्री 108 दया सागर जी महाराज नेमिगिरी ने कही।
उन्होंने कहा बंगाल में एक कहावत है- "अतिर भक्ति चोरेर लक्षणम्" यानी कि जो अधिक भक्ति-चापलूसी करता है उसमें कोई रहस्य अवश्य छुपा रहता है। आप सभी परिचित हैं ऐसे जीव से जो आपके माथे पर मडरायेगा कानों में गुनगुनाकर गाना सुनाएगा और पैरों में आकर चरण को चूमेगा और वही प्राणी आपका बड़े प्रेम से खून भी पिया करता है, वह कौन प्राणी है? आप खोजें, ठीक इसी प्रकार से आप की भक्ति चापलूसी करने वाला ऐसे असहनीय दुखों को देता है। वह दुख नर्क से भी बत्तर दिखाई देने लगते हैं, ऐसे दुःखों के आने पर यह प्राणी कोई फांसी लगाकर मरने को तैयार होता है, कोई जहर खाकर मरने को तैयार होता है। कोई आग लगाकर मरने को तैयार होता है एवं अन्य साधनों से मरने को तैयार होता है। आचार्यों ने कहा है-
"आत्मघाती महापापी" इस प्रकार के दुखों के कारण ऐसे महापाप को भी यह प्राणी करने के लिए तैयार हो जाता है, मैं आप भव्यात्माओ को यह इसलिए बता रहा हूं कि इस संसार में सुख-दुख के कारण ही यह प्राणी अपने आप को भूला हुआ है, ऐसे सुखाभास से बचकर, ऐसी संसार की धूप छाया से बचकर। परम सुख की प्राप्ति के लिए, शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए थोड़ा सा विचार करें कि "
दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान,
तुलसी दया ना छोड़िए जब तक घट में प्राण" इस प्रकार से अपने हृदय में स्व और पर के प्रति दया के भाव रखते हुए अभिमान आदि से विरक्त होकर सच्चे धर्म में लगकर परमसुख की प्राप्ति करें।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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