हम जैसा करते हैं वैसा हमें फल प्राप्त होता है: मुनिश्री समयसागर जी : मुनिसंघ का सागर की अाेर विहार हुअा, सिलाैधा रात विश्राम के लिए रूके




खुरई -हम जैसा करते हैं वैसा हमें फल प्राप्त होता है। इस संसार परिभ्रमण का कारण मेरी अपनी अज्ञानता और आसक्ति है। जो भी प्रतिकूल परिस्थितियां मुझे प्राप्त हुई हैं उनके लिए मैं स्वयं ही उत्तरदायी हूं। कुछ कर्म हम करते हैं, कुछ कर्म हम भोगते हैं और कुछ कर्म हम नए बांध लेते हैं।
इस प्रकार यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। यदि हम चाहें तो इस संसार परिभ्रमण की प्रक्रिया को अपनी सावधानी और अनासक्ति से क्रमशः कम करते-करते पूर्ण मुक्त हो सकते हैं। यह बात विहार की पूर्व बेला में निर्यापक श्रमण स्वाध्याय शिरोमणी मुनिश्री समयसागर जी  महाराज ने अपने आशीर्वाद में श्रद्धालुओं से कही। उन्होंने कहा कि कर्म हम अपने मन, वाणी और शरीर की क्रियाओं से निरंतर करते रहते हैं, चाहे वह कर्म करने वालो हो, भोगने वाला हो या संचित होने वाला हो। कर्म बंध की प्रक्रिया में मुख्य रूप से तीन चीजों की भागीदारी है। आसक्ति या मोह, वर्तमान के पुरुषार्थ में गाफिलता या लापरवाही और हमारी अज्ञानता।
आसक्ति या मोह पर मेरा वश नहीं है क्योंकि यह पुराने बंधे हुए कर्मों के फल का परिणाम है लेकिन वर्तमान के पुरुषार्थ में सावधान होकर और कर्म बंध की प्रक्रिया का ज्ञान प्राप्त कर मैं कर्म फल भोगने और नए कर्म बंध होने की प्रक्रिया को निश्चित दिशा दे सकता हूं। समीचीन ज्ञान प्राप्त कर मोह को घटाते हुए वीतरागता के प्रति अपनी रुझान बढ़ाकर मैं अशुभ कर्म बंध के स्थान पर शुभ कर्म बंध कर सकता हूं। उन्हाेंने कहा कि जो कर्म मैंने पूर्व में बांध लिए हैं, वे अपना फल तो अवश्य देंगे। लेकिन वे कर्म जैसे मैंने बांधे हैं वैसे ही मुझे भोगना पड़ें या अपना मनचाहे फल दें ऐसी मजबूरी नहीं है।
इसलिए कर्म बंध की पूरी प्रक्रिया समझना आवश्यक है। मेरी अज्ञानता की वजह से मेरी पुरुषार्थ हीनता बढ़ती है और उस कारण से मोह मुझ पर हावी हो जाता है। ऐसे कर्म भी जो अपरिवर्तित फल देने वाले हैं उनमें भी मैं अपने पुरुषार्थ से परिवर्तन कर उनकी फल शक्ति को कम या अधिक करने में समर्थ हूं। कर्मोदय के समय यदि हम हर्ष-विषाद न कर संतोष और समता धारण करने का पुरुषार्थ कर सकें तो इन पूर्वोपार्जित कर्मों के फल को आसानी से भोगकर नवीन कर्मबंध की प्रक्रिया को नष्ट कर सकते हैं।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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