प्रकृति का हो रहा है शुद्धिकरण


अब ऐसा लग रहा है जैसे सम्पूर्ण प्रकृति  का शुद्धिकरण हो रहा हो ।सारी प्रकृति मुस्कुरा रही हो।* *प्रकृति के द्वारा दी गई समस्त विरासतें लह लहा रही है। बहुत भाग रहा था इन्सान । कितना भागोगे कब तक भागोगे किसके लिए भागोगे । एक झटका दिया और सब अपने अपने घरों में चले गये।* *पर्यावरण शुद्ध हो रहा है।*

*ऐसा लग रहा है कि कलयुग में सतयुग आ गया है। कितना सादा जीवन हो गया। दाल रोटी ,कुछ कपड़े ,एक घर बस इतना ही काफी लग रहा है।थोड़े में भी आनंद आ रहा है।सुबह योगा करके अपनी पूजा पाठ भक्ति करना पारस जिनवाणी पर गुरुवाणी सुनना  , फिर रामायण ,महाभारत ,देखना ,शाम को शंका समाधान जिज्ञासा समाधान देखना ,आरती फिर महाभारत ,रामायण।*
*सारे घर के सदस्यों का यही रूटीन हो गया है।सब मिल कर काम करते हैं।*

*भागदौड़ की जिंदगी में ठहराव आ गया है। शांति , संतोष सबके मन मे है।*
 *सोना , चांदी, धन ,सुंदर ड्रेस कोई काम नही आ रहा। थोड़े में गुजारा हो रहा है । यही तो है संतोष धन। सब कुछ था ,बस यही तो नही था।*
*भक्ति की लहर बहती रहती हैं।* *न कोई भाव बढ़ने की खुशी, न कोई घटने का दुख*। *न कोई पर चिंता, न कोई पर निंदा, सिर्फ और सिर्फ परमार्थ का भाव*। *मुनष्य पागल सा हो गया था।  मतलब जीवन है,तो जग है, अन्यथा....सब व्यर्थ है*

*पारस जैन " पार्श्वमणि" कोटा

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