जो समाज के लिए लोकप्रिय होते हैं वे परिवार के लिए भी समय निकालें, परिजन भी उनका साथ दें मुनि श्री

सागर-जो समाज के लिए लोकप्रिय होते हैं वे परिवार के लिए भी लोकप्रिय बनें। समय निकालकर अपने परिवार में अच्छा स्थान बनाएं। परिवार वालों से भी कहना चाहूंगा यदि तुम्हारे परिवार में कोई खानदान का नाम ऊंचा करने वाला व्यक्ति हो, समाज में बड़ा डायनामिक हो तो भले ही सारा संसार उसकी प्रशंसा करता हो परंतु उसका परिवार कभी प्रशंसा नहीं करता है। हो सकता आपके साथ ऐसा हो। ऐसे में परिवार जनों को उसकी योग्यता का आंकलन कर उसकी प्रशंसा करना चाहिए, क्योंकि वह अपने साथ-साथ अपने खानदान का भी मान बढ़ाता है। इसके लिए सभी को उस का साथ देना चाहिए जिससे वह लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच जाए। यह बात मुनिश्री प्रमाण सागर जी  महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में शंका समाधान कार्यक्रम में कही।
उन्होंने कहा कि यह अशुभ समय है, सभी भगवान की शरण में रहें। अपने खानपान पर संयम रखें, जिससे आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहेगी। भारत का युवा वर्ग काफी कमजोर हो रहा है, यह चिंतनीय है। उन्हें अपनी प्रवृत्ति में संयम बरतने की आवश्यकता है। वह अपने घरों पर रहें, अभी तो साधुओं जैसा संयम उनको रखना पड़ेगा और अपने मन पर ताला लगाना होगा। यदि आप लोग संयम रख लें तो इस त्रासदी पर रोक लग जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध गीतकार रविंद्र जैन असाधारण प्रतिभा के धनी थे। और मुनिश्री ने कहा कि वे कई बार दर्शन करने आते थे तो बहुत चर्चाएं होती थी एक बार मैंने उनसे पूछा की आपको दिखता नहीं है फिर लिखते कैसे हैं तो उन्होंने कहा था कि शायद मेरी आंखें होती तो मैं इतना अच्छा लिख नहीं पाता। उन्होंने कहा महाभारत रामायण में रविंद्र जैन के गीतों व संगीतों का जबरदस्त तालमेल था और उन्हीं के कारण वे दोनों सीरियलो को सचित्र सा कर गए। भगवान बाहुबली स्वामी के ऊपर उनका उनके द्वारा गाया हुआ भजन आज भी लोगों की जुबान पर है। उन्हें धर्म का ज्ञान था उनकी आंखें जरूर नहीं थी लेकिन उनके पास प्रज्ञा की आंखें थी।
मुनिश्री ने कहा हिमालय पर चढ़ना हो और कठिनाई न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। जो शिखर पर जाता है उसे ऐसे मार्ग मिलते हैं। जब मंजिल मिल जाती है तो शाश्वत सुख की अनुभूति प्राप्त होती है। नीचे चलने पर फिसलने का डर होता है लेकिन ऊपर चलने पर संभल संभल कर चलना होता है। सत्य पर चलने का मार्ग हिमालय पर चढ़ने जैसा है। रेत पर चढ़ने का मार्ग असत्य पर चलने जैसा है।
पाप और पुण्य दोनों ही कर्म के कारण होते हैं
मुनि श्री ने कहा कि पाप दिखता नहीं है और पुण्य दिखता है।दोनों का फल दिखाई पड़ता है। पाप और पुण्य की क्रिया को सामने रखिए। दूसरों की जो क्रिया तुम्हें अच्छी न लगे वह क्रिया पाप है।जैसे कोई गाली देता है, कोई मारता है, कोई सताता है, कोई शोषण करता है। यह सब तुम्हें अच्छा नहीं लगता है। यही तो पाप है। जो कोई मदद करता है जो तुम्हें सहायता देता है, सहारा देता है तुम्हारे अनुकूल बात करता है यही पुण्य का कार्य है। जो भोगने में अच्छी लगे वह पुण्य है।और जो अच्छी न लगे वह पाप है। पाप और पुण्य भी कर्म के कारण होते हैं। उन्होंने कहा अच्छाई का संक्रमण नहीं होता बुराइयों का संक्रमण होता है। एक सड़ा हुआ आम पूरी टोकरी के अच्छे आमों को सड़ा देता है लेकिन सभी अच्छे आम एक सड़े हुए आम को ठीक नहीं कर पाते हैं। वर्तमान में जागरूकता फैलाना चाहिए, भावों और विचारों का संक्रमण भी होता है। हमारे विचार बड़ी तेज गति से संक्रमित हो जाते हैं।
आधुनिक संसाधनों और सुविधाओं के बढ़ने से उनका दुरुपयोग हो रहा है
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा पुराने युग में पुष्पक जैसे विमान थे उस समय लोग की समझ सही थी मर्यादाओं में रहते थे। और उस पर टस से मस नहीं होते थे आज न शिक्षा बची है न संस्कार बचे हैं आधुनिक सुविधाओं और संसाधनों के बढ़ने से उनका दुरुपयोग हो रहा है मर्यादाओं के खत्म होने से ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं उन्होंने कहा कि प्रथम गुरु मां और द्वितीय गुरु पिता होते हैं वे हमारे अलौकिक माता-पिता हैं उनकी बात मानो, जब विरक्त हो जाओ तो गुरु की बात मानना शुरू करो मां-बाप के दिए हुए संस्कारों के कारण ही हम इतनी ऊंचाइयों पर पहुंच सकते हैं भावना योग करने वाला अपने आप को शांत बनाए रखता है बच्चों के प्रति आजकल माता-पिता ज्यादा चिंतित होते हैं यह ठीक नहीं है आप बच्चों को अच्छे संस्कार दो ऐसा मौका कभी नहीं आएगा और यदि कभी मौका आता है तो वह बच्चे सामने वाले को धूल चटा देंगे।
           संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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