अपनी कमाई का 60% खर्च करो तो 30% बचत करो, शेष 10% दान में दे देना चाहिए : मुनिश्री




सागर-दान की अपनी महिमा है। जैनों में दान की महिमा होती है। गृहस्थ की शोभा दान से है और जब जरूरत हो उसका उपयोग करें। यह बड़ा व्यापक शब्द है। अनुग्रह करना आपका दान होगा और कमाकर के दूसरों को अवसर देना यह योगदान है, और दान से बड़ा योगदान माना जाता है। अपनी कमाई का 60% खर्च करो, 30% सुरक्षित करो और 10% दूसरों के लिए दान करो। यह बात मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने भाग्योदय तीर्थ से लाइव प्रवचन में कही।

मुनिश्री ने कहा किसी को रोजगार मिलता है यह बड़ी सोच के कारण होता है। यही देश भक्ति और देश सेवा है। धनपतियों के प्रति नकारात्मक धारणा इस देश में बनी है बड़े उद्योगपति न होते तो देश का विकास का रथ रुक जाता। उनके माध्यम से हजारों लाखों परिवारों का घर चलता है। कई धनपतियों ने इस त्रासदी के दौरान दिल खोलकर दान दिया है। भारत की यही पहचान है कि हमारे यहां संस्कृति है कि दो रोटी होती हैं तो एक हम दूसरे को देना जानते हैं। यह प्रवृत्ति हमारी है। केवल संग्रह कतई उचित नहीं है।परिग्रह जी का जंजाल है मनुष्य को पैसे का कीड़ा बना दे यह परिग्रह है।

भले ही दौलत असीमित हो लेकिन इच्छाएं सीमित होना चाहिए

मुनिश्री ने कहा कि हमारे तीर्थंकरों ने सब कुछ छोड़ने का कोई उपदेश नहीं दिया है। मनुष्यों को जीवन के निर्वाह के लिए धन की आवश्यकता होती है। वह है अपरिग्रही नहीं हो सकता। सीमित परिग्रह में जियो। इच्छाओं को कम से कम में अपना काम करो। सीमित खर्च कर अपरिग्रह बन सकता है। आवश्यकताओं को अपनी सीमाएं बना लो संतोष वृद्धि के साथ जीवन जीने का, सार्थक बनाने का सबसे बड़ा कार्य है। भले ही असीमित दौलत क्यों न हो। इच्छाएं सीमित होना चाहिए। परिग्रह का भार नहीं बढ़ेगा। संपत्ति सीमित है इच्छाएं असीमित है तो यह परिग्रह ही माना जाएगा। उन्होंने कहा धन जोड़ना, संग्रह करना , यह सर्वदा बुरा नहीं है। संग्रह करो लेकिन शुद्ध और सात्विक रीति से करो। नीति, न्याय और नैतिकता से करो। संग्रह करके रोके रहने के लिए नहीं संग्रह करो। अनुग्रह के लिए अनुग्रह का मतलब स्व पर है। व्यापार के हित के लिए अपरिग्रह से हमारी ग्रोथ नहीं रुकती है।

आज लॉकडाउन है सब बंद है। फैक्ट्री बंद है। आवागमन बंद है। संसार थमसा गया है। धन जीवन से ऊंचा नहीं होता यह सारा विश्व आज जान गया है। यह बात हजारों साल पहले तीर्थंकरों ने कह दी थी। पानी के प्रवाह के बगैर नाव नहीं चलती है। पानी का प्रवाह नाव के नीचे होना चाहिए ऊपर नहीं। नहीं तो नाव डूब जाती है। जैन समाज संपन्न समाज मानी जाती है। पैसा कमाना जानते हैं और खर्च करना भी जानते हैं। समाज के लोग उदाहरण भी हैं अपने पर कम खर्च करते हैं और समय अनुसार औरों पर ज्यादा खर्च करने की हिम्मत भी रखते हैं। पैसा कमाना खर्च करना यह सबके बस की बात नहीं होती औरों पर खर्च करना तो बहुत कम लोगों की बस की बात है। दान की महिमा अपरंपार है।

वर्तमान युग में अर्थ की आवश्यकता है। जोड़ने के लिए पागल मत होइए। पैसे को जीवन के निर्माण का साधन मानिए लेकिन साथी बनाने की भूल मत करना। जोड़कर मत रखो और जहां जरूरत पड़े वहां पर खर्च करो। जरूरत और जरूरतमंदों के लिए तुम्हारे निमित्य से किसी की जरूरत पूरी होती है वह हमेशा होना चाहिए। पेट भरने के लिए कमाओ पेटी भरने के लिए नहीं। आज धन कमाने की अंधी लालसा है लोगों में कोई कितना भी जोड़ ले अंत समय उसे सब यही छोड़कर जाना है। गुरुदेव का एक हाइकु है जुड़ो, ना जोड़ो, जोड़ा छोड़ो, जुड़ो तो बेजोड़ छोड़ो। भगवान महावीर स्वामी कहते थे की अपनी चीजों को जो नहीं बैठता है उसको मुक्ति कभी नहीं होती। धन जीवन के लिए है और जन से ऊंचा जीवन धन है। जीवन में जब धन लगाना पड़े तो खुले मंच से लगाना चाहिए।

पैसा जीवन निर्माण का साधन है, लेकिन इसे साथी मानने की भूल मत करिए

जहां जरूरत है वहां मदद पहुंचाओ

मुनिश्री ने कहा बचत खूब बढ़ाते रहो अपनी बचत से किसी को बचा नहीं सकते हो तो यह तुम्हारी मूर्खता है। सच्चे अर्थों में देखा जाए अपरिग्रह के आदर्श को देखकर हम समुचित विकास कर सकते हैं। धन का संग्रह नदी पर बांध जैसा है। जब नदी में पानी ज्यादा होता है तो बांध बना बनाने से पानी रुक जाता है यदि हमारे पास भी धन सर प्लस आ रहा है तो रोको और जहां पर जरूरत है वहां पर पहुंचाओ।

संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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