जरूरत के मुताबिक उपयोग करो, जो चीजें आसानी से मिलती हैं उसकी इज्जत कम होती है लेकिन संकट के समय में उसकी कीमत समझ आती है : मुनिश्री


सागर -किसी भी चीज का उतना उपयोग करो जितना जरूरी हो। जैसे पानी की जितनी जरूरत हो उतना ही लो। अधिक पानी नाली में जाएगा और वह गंदा पानी फिर किसी नाले में जाएगा। फिर वह नदी में पहुंचेगा। गंदगी बढ़ती जाएगी। गंगा को गंदा किसने किया? ऐसे ही गंगा गंदी हो गई। यह बात भाग्योदय तीर्थ में विराजमान मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने ऑनलाइन शंका समाधान कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि जो गुणों के आधार पर मूल्यांकन करते हैं वह चीज जो आसानी से मिलती है, उसकी इज्जत कम होती है।लेकिन जो चीजें प्रयास पूर्वक मिलती हैं,उनका महत्व बाद में ही समझ आता है।
जैसे श्वांस बिना परिश्रम में मिलती है आती है और जाती है। मनुष्य को अपनी श्वांस का मूल्य समझ में तब आता है जब बीमार होने पर ऑक्सीजन लगती है। मुनिश्री ने कहा वैश्वीकरण ने उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया है। हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुंब की है। विश्व बंधुत्व की भावना से चलते तो इस तरह की कोई त्रासदी नहीं आती। वैश्वीकरण में अंतरराष्ट्रीय संधियां हैं। इसमें सरकार कुछ नहीं कर सकती है। लेकिन हर भारतीय सोच ले कि मैं भारत के लिए जीयूंगा, भारतीय सामान का ही उपयोग करूंगा तो भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो जाएगी। जिनका विकल्प यहां नहीं हो तो वह बाहर से ले सकते हैं, लेकिन जिनका विकल्प है वह हमें यहीं से लेना चाहिए। लोगों की सोच ब्रांडेड की है जो हम पहनेंगे वही ब्रांड बन जाएगा ऐसी मानसिकता बना लें तो हम विदेशी वस्तुओं का त्याग कर देंगे। उन्होंने कहा कफन का कोई ब्रांड नहीं होता है। हम कहते हैं स्वदेशी चीजों का उपयोग करो क्योंकि इसमें देश का हित जुड़ा हुआ है। भारतीय कंपनियों ने इस भीषण त्रासदी में अपना खजाना खोला है, लेकिन एक भी विदेशी कंपनी का नाम अब तक न तो पढ़ा है और न ही सुना है जिसने अपनी ओर से एक ढेला भी सहायता के रूप में दिया हो। समाज में एक जुनून की आवश्यकता है और आज का युवा सोच ले तो स्वदेशी पहनावे और अन्य स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने से भारत देश पुराने गौरव को वापस ला सकता है।
एक प्रश्न के उत्तर में मुनिश्री ने कहा पूर्वजों का पुण्य मिले न मिले लेकिन उनका किया हुआ हर काम आपके काम आता है वही आपका बैकग्राउंड बनता है। उन्हीं की प्रेरणा से आप पुण्य बढ़ाएं। बाप-दादाओं का जो यश का काम था वह आपके काम में आता है लेकिन उनका किया गया पुण्य आपके काम नहीं आएगा। हर व्यक्ति को अपना-अपना पुण्य मिलेगा खुद हमें भोगना पड़ेगा। बाप दादा अपना पुण्य लेकर के चले गए हैं। एक व्यक्ति ने कहा इनमें अपने बेटे को जो संपत्ति है वह तो दे सकता हूं लेकिन मेरे द्वारा जोड़े गए पुण्य का एक भी परमाणु नहीं दे सकता हूं। चक्रवर्ती का बेटा कभी चक्रवर्ती नहीं बना। ऐसे कई लोग मैंने देखे हैं जिनके बाप दादा मालगुजार और करोड़पति अरबपति थे लेकिन उनकी औलाद, नाती पोता सब फक्कड़ हैं। कुछ ऐसे फक्कड़ भी मैंने देखे हैं जिनके बेटे नाती पोते आज अरबपति खरबपति हैं। धर्म में कर्म में भी उनका नाम है।
आज अगर लोगों की कमाई कम हो गई है तो उनके खर्च भी बहुत कम बचे हैं : मुनिश्री ने कहा आपको कहां जाना है इसका लक्ष्य बनाओ। साथ ही अपने अंदर के रावण को जलाओ। बाहर के रावण को जलाने से अच्छा है पुतला जलाना। संकल्प हिंसा का दोष लगता है। मुनिश्री ने कहा भीषण त्रासदी में आज अगर लोगों की कमाई कम हो गई है तो उनके खर्च भी बहुत कम बचे हैं। उनका सारा खर्च बच गया है। व्यक्ति मौज और शौक में ज्यादा खर्च करता है।
              संकलन अभिषेक जैन लूहादीया रामगंजमंडी

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