घरों से काम करने की व्यवस्था पर शोध कराए सरकार, इसके सकारात्मक परिणाम ही आएंगे मुनि श्री


सागर -तालाबंदी के इस दौर में अर्थव्यवस्था खराब हुई है। आर्थिक संकट है। हम हमारी जरूरतें को कम करें। अर्थाभाव तब तक प्रतीत होता है जब जरूरत हो। आप जरूरत से कम खर्च करोगे और अपने जीवन शैली में बदलाव लाओगे एवं अल्प साधनों में जीवन जीने की कला समझोगे। नीति भी कहती है जीवोपार्जन में आय कम हो तो खर्च कम करो। हम खुशी से रह सकते हैं।
यह बात भाग्योदय तीर्थ में विराजमान मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने ऑनलाइन शंका समाधान में कही। मुनिश्री ने कहा लॉकडाउन खुलने के बाद लोगों की जीवन शैली में बहुत परिवर्तन आने वाला है। दफ्तरों में कार्य करने के बजाए लोगों को घरों में काम करने का मानस बनाना चाहिए। इससे सरकार को ही फायदा होगा और इस संदर्भ में सरकार को अनुसंधान कराना चाहिए कौन से शासकीय काम हैं जो घर से हो सकते हैं। नीति के हिसाब से यह सब शुरू होना चाहिए और इसमें सकारात्मक परिणाम भी देखेंगे। तालाबंदी में लोग शुद्ध सांस ले रहे हैं इसकी समीक्षा भी होनी चाहिए।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि हमारी असली पूंजी सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र है अंदर मन में अंकित धर्म ही मेरे जीवन का आधार है। जब यह जान जाओगे तब मानोगे जिसको महसूस होना शुरू हो जाता है उसे चक्रवर्ती की संपदा भी खराब लगने लगती है।
रट्टू तोता मत बनिए, महत्वपूर्ण अंश का अंडरलाइन करें
मुनि श्री ने कहा पढ़ते समय याद करते समय भूला जा सकता है। जब किसी चित्र को हम देख लेते हैं या उसे हम सोच लेते हैं तो वह अपने जीवन में ज्यादा देर तक याद रहता है। रट्टू तोता मत बनिए उसके महत्वपूर्ण अंश का अंडरलाइन करें। इसमें सार क्या है यह धर्मशास्त्र की बात हैं। बचपन में जो बातें याद हो जाती थी वह बातें जीवन भर याद रहती हैं।
{बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि वह गलती करने से पहले 10 बार सोचें : बच्चों के प्रश्न पर मुनि श्री ने कहा फसल बोने के बाद किसान मेहनत करता है और यदि फसल खराब हो जाती है तो दोष जमीन को दिया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। जब बीज खराब होता है तो आरोप भी बीज पर ही आना चाहिए। इसी प्रकार बच्चे बिगड़ते हैं और दोष माता पिता पर आता है तो संस्कार देने वाला तो माता पिता ही होते हैं। बीज बोने वाले उन्नत बीज बोएं यानी बच्चों को ऐसे शानदार संस्कार दें कि कोई गलत काम करने से वह 10 बार सोचे।
{दान देने की कोई उम्र नहीं होती,
 ऐसा करना पुण्य का कार्य होता है : एक छोटी बच्ची ने कहा महाराज श्री आपने कहा था कि 10% अपनी कमाई का दान देना चाहिए तो बड़े लोग कहते हैं अभी आपकी उम्र दान देने की नहीं है। इसके जबाव में मुनिश्री में कहा ज्ञान देने की उम्र भी होती है और कोई यदि बचपन से दान देने की संस्कार सीखता है तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। दान देना दुर्गति का नाशक होता है। पुण्य का कार्य होता है और यह कल्याण का आधार है। इससे आपकी उदारता भी बढ़ती है।
             संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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