बांसवाड़ा-आचार्य श्री पुलक सागरजी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि आमतौर पर जैन परंपरा में शादी विवाह पर विशेष जोर नहीं दिया गया है। इस संस्कार को उपेक्षित किया गया है। यह भी मान लिया गया है कि जैन संत और ऋषि मुनि विवाह नहीं करते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि यह बात मिथ्या है, शादी विवाह का हमारे शास्त्रों में बड़ा सुंदर वर्णन किया गया है। विवाह संस्कार को मुनि दीक्षा की तरह संभाल कर रखा जाए और इस पवित्र रिश्ते को मर्यादा में निभाया जाए। शास्त्रों में विवाह संस्कार को गलत नहीं माना गया है। विवाह भगवान ऋषभदेव द्वारा प्रतिपादित गृहस्थ जीवन की आवश्यक परंपरा है। आचार्यजी ने कहा कि भगवान ऋषभदेव विवाह संस्कार की महत्ता को नहीं करते तो इंसान का पशुवत व्यवहार हो जाता। उन्हीं के द्वारा प्रतिपादित किए गए विवाह संस्कार के क्रियान्वयन मानवीय रिश्ते नातों की नींव डाली। परिवार संस्था की नींव डाली। इसलिए जैन परंपरा में पहले भी और आज भी विवाह परंपरा को कभी गलत नहीं माना गया। समय के साथ इस परंपरा का पश्चिमीकरण होता गया। आचार्य जी ने कहा कि मेरा कहना है कि वैराग्य में विवाह ना कभी बाधा था और न कभी बनेगा। विवाह संस्कार को तो 16 संस्कारों में अंतिम और महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है।
संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी
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