धार्मिक और नैतिक शिक्षा के शिविर लगने चाहिए: आचार्य श्री पुलक सागर जी

बांसवाड़ा- आचार्य श्री  पुलक सागर जी  महाराज  ने अपने प्रवचन में कहा कि माता-पिता को स्कूल में छुट्टियां शुरू होने से  पूर्व ही अपने बच्चों के लिए ऐसी गतिविधियो की  योजना कर लेनी चाहिए  जिनका पढ़ाई से भले ही वास्ता ना हो। लेकिन जो बच्चों के व्यक्तित्व विकास  एवं उन्हें एक सुयोग्य नागरिक बनाने में जरूर सहयोगी होगी। उन्होने कहा हालांकि यह मौसम  परीक्षाओं का था स्कूल और कॉलेज की परीक्षाएं चल रही होती। कुदरत ने  कोरोना वायरस से बच्चों में छुट्टियां घोषित हुई है।
छुट्टी का नाम  आते ही हमारे बच्चों के चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है
आचार्य ने कहा वैसे छुट्टी का नाम  आते ही हमारे बच्चों के चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है। छुट्टी यानी मौज  मस्ती घूमना फिरना, टीवी देखना, क्रिकेट और कुछ यह लिया जाता है। लेकिन इस  बार ऐसा ना हुआ। ठीक है साल भर की पढ़ाई की थकावट के बाद डेढ़ दो माह में  बच्चों के दिमाग को फ्रेश करने करने और उन्हें नई ताजगी करने का मौका देती  है। आचार्य जी ने कहा कि इन छुट्टियों को सार्थक और अविस्मरणीय बनाया जा  सकता है। हमें इसका उपयोग हमको नई चुनौतियों के मुकाबले के लिए पारंगत करने  के लिए भी किया जा सकता। इस कार्य में सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं की  अहम भूमिका है। मंदिरों एवं अन्य धार्मिक स्थलों पर ऐसे आध्यात्मिक शिक्षण  शिविर लगाए जा सकते हैं जहां बच्चों को धर्म एवं अध्यात्म की शिक्षा दी  जाए। व्यक्तित्व विकास शिविर भी लगाए जाएं जिनमें बच्चों की छिपी हुई  प्रतिभा को निखारने और उन्हें किसी विशेष कला अथवा विद्या में पारंगत किया  जा सके।
शिविरों का आयोजन स्वाभाविक माहौल में होना चाहिए जिसमें  बच्चे को का यह एहसास ना हो कि उस पर कुछ जबरन थोपा जा रहा है, 
  आचार्य ने कहा इन शिविरों का आयोजन ऐसे स्वाभाविक माहौल में होना चाहिए जिसमें  बच्चे का यह एहसास ना हो कि उस पर कुछ जबरन थोपा जा रहा है, बल्कि बच्चा  खुशी-खुशी स्वप्रेरणा से इसमें शिरकत करें। आचार्य जी ने कहा कि वैसे  प्रत्येक वर्ष स्कूल की छुट्टियों के समय विभिन्न नगरों और कस्बों में  कार्य करने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक संस्थाएं इस तरह के  शिविरों का आयोजन करते रहते है। लेकिन इनमें से अधिकांश शिविर सिर्फ  औपचारिकता के निर्वहन तक ही सीमित रहते हैं। लिहाजा बच्चों को इसका लाभ भी  सीमित ही होता है। परिणाम यह होता है कि जिस उद्देश्य की घोषणा कर  प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं, वह उद्देश्य पूरा ही नहीं होता। शिविर  समापन के बाद भी बच्चे संबंधित कला या विद्या में सिफर ही रहते हैं।
             संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी

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