विनम्रता ईश्वरीय प्रेम का आमंत्रण है। पुलक सागर जी

   बांसवाड़- बाहुबली कॉलोनी जैन मंदिर में आचार्य पुलक सागर जी ने अपने प्रवचन में कहा कि विनम्रता सरलता की पर्यायवाची है। विनय या विनम्रता का फल है सेवा। गुरु की सेवा का फल है। ज्ञान से विरति और विरति से कर्म स्राव का निरोध होता है। आश्रव निरोध से तपोबल बढ़ता है। तप का फल कर्म निर्जरा है। निर्जरा से क्रिया निवृत्ति होती है, जिससे योग (मन, वचन, काय की स्पंद शीलता) का निरोध होता है। योग निरोध ही संसार परंपरा का उच्छेद है, यानी शाश्वत मोक्ष की प्राप्ति है। अर्थात विनम्रता समस्त कल्याण की भाजन है। आचार्य जी ने कहा कि कठोर मिट्टी को फोड़कर अंकुर निकलता है, वैसे ही रूप, धन, ज्ञान, प्रभुता, जाति, कुल और शक्ति की अहंता को तोड़कर विनम्रता का अंकुर निकलता है। अहंकार के विसर्जन में विनम्रता फलित होती है। अंतरंग की क्षमा, करुणा, श्रद्धा और सरलता ही अभिव्यक्त होकर विनम्रता के रूप में प्रकट होती है। क्षमा केंद्र है, विनम्रता उसकी परिधि। श्रद्धा प्रकाश है, विनम्रता उसका प्रतिबिंब। करुणा झरना है, विनम्रता उसका प्रपात। आचार्य जी ने कहा कि परमाणु के विस्फोट से अनंत ऊर्जा प्राप्त होती है, इसी प्रकार विनम्रता के प्रस्फुटन से शांति की अक्षय ऊर्जा प्राप्त होती है। विनय शील व्यक्ति शुद्र सीमाओं से ऊपर उठकर ब्रह्मांड में समर्पण का भाव लिए रहता है। वह स्वयं मिटकर सृजन का एक नया अध्याय जोड़ जाता है। कोई मुझसे पूछे, जीवन का सहज सौंदर्य क्या है तो मैं कहूंगा ‘विनम्रता’। आचार्य जी ने कहा कि विनयवान का अपना एक मस्तक झुकता है तो उसके चरणों में कोटि-कोटि मस्तक झुकते हैं। झुक कर ही शिखरों की ऊंचाइयां चढ़ी जा सकती है । जो जितना झुकने को राजी हो जाता है वह उतना ही महत्वपूर्ण बन जाता है। जो पौधे झुकना जानते हैं तेज आंधियां भी उन्हें उखाड़ नहीं पाती। सरिता का जल झुक कर ही पात्र में भरा जा सकता है। समर्पण विनम्रता का सहोदर है। विनम्रता ईश्वरीय प्रेम का आमंत्रण है।
                संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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