सच्चे गुरु आरंभ और परिग्रह से मुक्त होते हैं मुनि श्री निकलंक सागर जी


मुंगावली-सच्चे गुरु वही होते हैं जो आरंभ व परिग्रह से मुक्त होते हैं। इनके पंचेन्द्रिय के विषय और संसार की विषयों की आशा नहीं होती। सच्चे देव शास्त्र गुरु पर सच्ची श्रद्धा और आशा हमें संसार से पार करा देती है। हमारा तो यही कहना है कि आप अपनी श्रद्धा गुरु, देव शास्त्र गुरु पर बनाएं और अटूट बनाएं देखो गुरु तो शत्रु, मित्र, दुख, सुख, निंदा प्रशंसा, पत्थर, सोना और जीवन मरण सभी में समता रखते है। यह बात शहर में चातुर्मास कर रहे मुनिश्री निकलंक सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि एक मां का बेटा साधु बन जाता है और जंगल में तपस्या कर रहा होता है। डाकू उसे घेर लेते हैं ओर उनकी तपस्या का प्रभाव कहे कि सभी उनको तेज कान्ति को देख डाकुओं के सरदार ने कहा ये दिगम्बर साधु हैं। इनसे हमें कोई नुकसान न होगा और चले जाते है। कुछ दिन बाद उन साधु की मां और बहन वहीं से गुजरती है और साधु के दर्शन कर पूछती हैं कि आगे डाकू चोरों को कोई भय तो नहीं है। वह कुछ भी उत्तर नहीं दिया आगे जाकर डाकू उन्हें घेर लेते है तो वह डाकू का सरदार कहता देखो मैने कहा था कि साधु से हमें कोई दिक्कत न होगी। वह मां तलवार उठाती है और कहती है ऐसे बेटों से बांझ होना अच्छा है तब डाकू का सरदार कहता है माँ तुम्हारा बेटा तो सच्चा साधु बना है उसे दुनिया से कोई मतलब नहीं है। सच्चा साधु ऐसा होता है और वह मां और बेटी को अपने गंतव्य तक पहुंचा देता है।
          संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी

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