जबलपुर -दयोदय तीर्थ में विश्व वन्दनीय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने उदबोधन में कहा कि आप लोगो ने कही बार अनुभव किया होगा कि सुलभ समझकर की गई उपेक्षा को हम सुलझा लेगे या मन की गाँठ को खोल लेंगे, कही बार गाँठ और घनिष्ट हो जाती है, रस्सी की गाँठ कुशलता से खुल जाती है। जूट की गाँठ विशेष प्रशिक्षण से निकाल सकते है। लेकिन यदि मानव बाल में गाँठ पड जाए तो वह इतनी सूक्ष्म होती है कि उसे खोंलने के लिए सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी काम नही आती। इस गाँठ को खोलने के लिए प्रशिक्षण, ख़र्च, उपकरण और समय लगता है।
हमारे आचार्यो ने चार प्रकार की कषाय बताई जो गाँठ की भांति है, क्रोध, मान, माया, लोभ की गाँठ निकालना बहुत कठिन है। यदि आपने पहले की गाँठ निकाल दी तो आगे की गाँठ निकलने में सरलता होगी। मनुष्य अवस्था में जो व्यक्ति जीवन के बंधन को समाप्त करके आगे बढ़ते है वे सभी गाँठो को छुड़ा लेते है। गृहस्थ अवस्था में भी काम, क्रोध, लोभ, मोह चारो गाँठो को निकाल कर मोक्षमार्ग पर चलने का अभ्यास आरंभ करना चाहिए। अंतिम क्षण में ही इसका मूल्य मिलता है, अन्यथा अंतिम क्षणों में भी गाँठे लगी होती है, तब मुक्ति नही होती।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमडी