बांसवाडा-मोहन कॉलोनी-रातीतलाई स्थित जिनालय प्रवचन के दौरान आचार्य सुंदर सागरजी महाराज ने कहा कि अपने जीवन का उत्थान करना ही जिन शासन है। आत्मा के उपर अनुशासन करने वाला धर्म जिन शासन है। जहां मन नहीं मिला, वचन नहीं मिला, खाने-पीने को कुछ नहीं मिला, ऐसे निगोद में से निकलकर हम सब आए हैं। अब यहां मनुष्य जन्म पाकर दु:खाें से छुटकारे का उपाय खोजना है। अनादि काल से कर्मों का जाल बिछा हुआ है। व्यवहार से जन्म मरण होता है। अनादि काल से जन्म मरण करते आए हैं। मरण के बाद दूसरी गति में जन्म लेने जब जीव जाता है। वह बीच का समय विग्रह गति कहलाता है। जिसका फल विग्रह गति मे मिलता है, वह विग्रह गति में होने वाले क्षेत्र विपाको कर्म है। समाज के पारस जैन ने बताया कि आज आचार्य श्री संघ सानिध्य में सुबह अभिषेक, शांतिधारा समाजजनाें द्वारा की गई। शाम को आचार्यश्री द्वारा शंका समाधान किया गया। इस दौरान श्रीजी की और आचार्यश्री की आरती की गई। कार्यक्रम में जैन समाज के संरक्षक अशोक वोरा, अध्यक्ष पवन नश्नावत, दिनेश नश्नावत,रमणलाल नश्नावत, सतीष वैद्य, अशोक वैद्य, सुमतिलाल वोरा,महावीर गंगावत, लोकेंद्र नश्नावत आदि मौजूद रहे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
