ग्वालियर अंचल ऐतिहासिक और गौरवशाली परंपरा के साथ रियासत से लेकर सियासत तक अपनी अलग ही पहचान रखता आया है, बात सियासत की करें तो केंद्र से लेकर सूबे तक की सरकार में ग्वालियर का अपना दबदबा रहा है फिर चाहे सरकारें किसी भी दल की रही हों , मध्यप्रदेश सरकार युवाओं को रोजगार देने के लिए कितनी प्रयासरत है ये तो सिर्फ सरकार जानती है य फिर नौकरी के चक्कर पढ़ पढ़कर अपनी आंखों पर चश्मा चढ़ा चुके ओवर एज युवा.... आज बात थोड़े अलग मुद्दे पर करते हैं जिस पर न तो पीड़ित कर रहे हैं और न ही सरकार की नुमाइंदगी करने वाले और न ही कोई सामाजिक संगठन .. ।
दरअसल मध्यप्रदेश में भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन व्यापम ( पूर्व नाम , अब ESB ) के जिम्मे है, व्यपाम को कौन नहीं जानता , वही व्यापम कांड जिसने लाखों युवाओं का भविष्य चौपट कर दिया था और वो परम्परा अब तक जारी है जिसे हम नौकरी में जुगाड के नाम से जानते हैं।
असल मुद्दा ये है कि ग्वालियर और ग्वालियर से लगे आसपास के जिलों से लाखों युवाओं ने हाल में माध्यमिक शिक्षक भर्ती परीक्षा के फॉर्म भरे और व्यापम ने परीक्षा केंद्र के चयन की जानकारी मांगी तो युवाओं ने ग्वालियर को प्राथमिकता और देते भी क्यों नहीं बेरोजगारी का दंश जो झेल रहे हैं लेकिन व्यापम की करतूत देखिए कि ग्वालियर में परीक्षा केंद्र न देकर भोपाल में केंद्र दे दिया जिससे न केवल बेरोजगार युवा भोपाल तक पहुंचने में परेशान हुए बल्कि किराया और खाने का बोझ लेकर ऐसे कराह उठे कि किसी से अपना दर्द बयान नहीं कर पाए । ग्वालियर से सरकार में जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्री , विधानसभा अध्यक्ष और केंद्र सरकार में मंत्री किसी को भी इन युवाओं की पीड़ा महसूस नहीं हुई और होती भी क्यों ,उनके नकारे बेटा ,बेटी नौकरी के लिए आवेदन थोड़ी करते हैं, जनता भूल जाती है इन निकम्मे नेताओं की करतूतें और हर पांच साल में फिर इनके जिंदाबाद के नारे लगाते हैं और अपने बेटे बेटियों को यूं ही दर्द में देखते रहते हैं।
ये लेखक के निजी विचार हैं नहीं है,लाखों युवाओं का दर्द है
इंजी. वीरबल धाकड़
स्वतंत्र पत्रकार