धर्म में पैसे को नहीं, त्याग को मिलना चाहिए सम्मान: मुनिश्री विद्यासागर जी



बीना-किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में मात्र दान देने वालों का ही सम्मान नहीं वरन व्रत, संयम, त्याग के मार्ग में चलने वाले उत्कृष्ट श्रावकों का सम्मान पहले होना चाहिए। मोक्षमार्ग में त्याग, तपश्चर्या एवं संयम को प्रधानता दी गई है। संसार में चारों ओर से धन-संपदा, जमीन जायदाद, सोना-चांदी, खाद्य पदार्थ, वस्त्र आदि संग्रह करना परिग्रह कहलाता है। इस संग्रह से रहित होना अपरिग्रह है। इन वस्तुओं का अधिक संग्रह करना अशांति को निमंत्रण देना है। आवश्यकता से अधिक जोड़ना दूसरे के लिए अभाव उत्पन्न करना है। यह प्रवचन रविवार को श्रुतधाम में विराजमान मुनिश्री विद्यासागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे।
मुनिश्री ने आगे कहा कि जो मनुष्य परिग्रह में सुख समझते हैं। मानो वे मूर्खों की दुनिया में जी रहे हैं। संसार में पाप का मूल परिग्रह है। संसार में जिसने भी इसको अपनाया, उसका पतन ही हुआ है। प्रवचन के पूर्व महिला मंडलों ने मुनि संघ को शास्त्र भेंट कर पुण्यार्जन किया। प्रवचन सभा का संचालन ब्रं. संदीप भैया सरल ने किया और सहयोग संकलन अशोक शाकाहार ने किया।
इसके पहले श्रुतधाम में मुनिश्री विद्यासागर जी महाराज, मुनिश्री शांतिसागर जी एवं मुनिश्री प्रशांतसागरजी महाराज के सानिध्य, ब्रं. संदीप सरल, पं. श्रेयांश शास्त्री सागर के मार्गदर्शन एवं संगीतकार मनोज रोड़ा, बल्लू सिंघई, अनादि जैन, तरुण जैन, राहुल बड्डे, संजय समैया, शैलू जैन के माधुर्य संगीत के साथ ही सैकड़ों श्रद्धालुओं ने महा मस्तिकाभिषेक विधान में अर्घ्य समर्पित कर धर्मलाभ लिया।
श्रीजी को स्वर्ण वेदिकाओं पर विराजमान कर अभिषेक संपन्न: सर्वप्रथम श्रीजी को पंडाल में स्वर्ण वेदिकाओं पर विराजमान कर अभिषेक संपन्न हुआ। उसके उपरांत बड़े बाबा भगवान आदिनाथ का महा मस्तिकाभिषेक एवं विधान का आयोजन किया गया। दूरस्थ अंचल से आए सैकड़ों श्रद्धालुओं ने अभिषेक, शांतिधारा, विधान करने का लाभ लिया। अशोक शाकाहार ने बताया कि जब तक मुनिश्री विद्यासागर महाराज का संघ श्रुतधाम में विराजमान है उनके मंगल आशीर्वाद एवं प्रवचन का आयोजन सुबह 9 बजे से होगा।
       संकलन  अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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