सागर-वर्णी कॉलोनी में विराजमान मुनि श्री समय सागर जी महाराज ने कहा कि भविष्य की चिंता में संसारी प्राणी वर्तमान को खो रहा है। वर्तमान में जीवन जीने का पुरुषार्थ करो क्योंकि भविष्य की चिंता में सुख शांति का अनुभव नहीं किया जा सकता है। प्रात:कालीन धर्मसभा में मुनिश्री ने कहा कि उद्देश्य को भी वित्र रखना चाहिए।
संसारी प्राणी पुण्य करना नहीं चाहता किंतु पुण्य का फल आवश्यक चाहता है। धर्म का श्रमण अच्छी भावना के साथ करना चाहिए। परमारथ की ओर उपयोग हो तो उत्थान हो सकता है। परमार्थ की ओर दृष्टि होनी चाहिए। अर्थ की ओर नहीं। मुनिश्री ने कहा कि अनावश्यक वस्तुओं द्वारा सर्वाधिक हिंसा हो रही है। तृष्णा कभी शांत नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि इमली का पेड़ बूढ़ा हो गया और धरासायी भी होने को है। किंतु उसकी खटास कभी बूढ़ी नहीं होती है। इंद्रिय के ऊपर नियंत्रण रखो। परिवार का पालन पोषण करना चाहते हो तो एक के प्रति लगाव को छोडऩा होगा। वहीं गांव का उत्थान चाहते हो तो कुल के प्रति दृष्टि को छोडऩा होगा। राष्ट्रहित की भावना चाहते हो तो अपना -अपना छोडऩा होगा। अगर आत्म कल्याण चाहते हो तो विश्व को छोडऩा होगा। इस अवसर पर मुनि पवित्र सागर जी महाराज ने कहा कि बिना विवेक और विनय के द्वारा की गई भक्ति नुकसानदायक और हानिकारक होती है। पुण्य को बढ़ाना है तो वाणी में विनम्रता जरूरी है। दान किसी भी प्रकार का हो दो सूत्रों में समाहित हो जाता है नहीं तो व्यवधान उत्पन्न हो जाता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
संसारी प्राणी पुण्य करना नहीं चाहता किंतु पुण्य का फल आवश्यक चाहता है। धर्म का श्रमण अच्छी भावना के साथ करना चाहिए। परमारथ की ओर उपयोग हो तो उत्थान हो सकता है। परमार्थ की ओर दृष्टि होनी चाहिए। अर्थ की ओर नहीं। मुनिश्री ने कहा कि अनावश्यक वस्तुओं द्वारा सर्वाधिक हिंसा हो रही है। तृष्णा कभी शांत नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि इमली का पेड़ बूढ़ा हो गया और धरासायी भी होने को है। किंतु उसकी खटास कभी बूढ़ी नहीं होती है। इंद्रिय के ऊपर नियंत्रण रखो। परिवार का पालन पोषण करना चाहते हो तो एक के प्रति लगाव को छोडऩा होगा। वहीं गांव का उत्थान चाहते हो तो कुल के प्रति दृष्टि को छोडऩा होगा। राष्ट्रहित की भावना चाहते हो तो अपना -अपना छोडऩा होगा। अगर आत्म कल्याण चाहते हो तो विश्व को छोडऩा होगा। इस अवसर पर मुनि पवित्र सागर जी महाराज ने कहा कि बिना विवेक और विनय के द्वारा की गई भक्ति नुकसानदायक और हानिकारक होती है। पुण्य को बढ़ाना है तो वाणी में विनम्रता जरूरी है। दान किसी भी प्रकार का हो दो सूत्रों में समाहित हो जाता है नहीं तो व्यवधान उत्पन्न हो जाता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी