मनुष्य वैसा ही बन जाता है, जैसे उसके विचार होते हैं: मुनिश्रीप्रवचन : श्रुतधाम में विराजमान मुनिश्री ने विशाल धर्मसभा को संबोधित किया



बीना-आंख का अंधा संसार में सुखी हो सकता है, लेकिन विचार का अंधा कभी भी सुखी नहीं हो सकता। विचार के अंधे को स्वयं ब्रह्मा भी सुखी नहीं कर सकते। विचार-विवेक जीवनरूपी महल की नींव है। बाइबिल में कहा है मनुष्य वैसा ही बन जाता है, जैसे उसके विचार होते हैं। जीवन में यदि सद्विचार नहीं हैं, विवेक नहीं है तो ऐसा जीवन, जीवन नहीं है।
ज्ञानी कहते हैं जो व्यवहार हमें पसंद नहीं वह दूसरों के साथ कदापि न करें। यह प्रवचन मंगलवार को श्रुतधाम में विराजमान मुनिश्री विद्यासागर जी महाराज, मुनिश्री शांतिसागर जी महाराज, मुनिश्री प्रशांतसागर जी महाराज ने विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे।
मुनिश्री ने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति में आचरण को परम धर्म एवं परम तप के रूप में माना है। जीवन में ज्ञान अनिवार्य है। ज्ञान का तात्पर्य आत्मज्ञान से हैं। वही सच्चा ज्ञान है। ज्ञान यदि जीवन के व्यवहार में नहीं आए तो ऐसा ज्ञान केवल भार बनकर रह जाता है।
किसी गधे की पीठ पर चंदन लाद दिया जाए तो वह गधा उसकी सुगंध का क्या आनंद लेगा। वह तो यही सोचेगा कि मैं कब अपने स्थान पर पहुंचू और कब इस भार से हल्का बनूं। ठीक इसी प्रकार जिसने आत्मा को जाना है, जिसने धर्म के तत्वों को जाना है लेकिन जीवन में उसका एक अंश भी नहीं उतारा वह भी ज्ञान का भारवाहक मात्र है। प्रवचन के पूर्व आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का पूजन संपन्न हुआ। प्रवचन सभा का संचालन ब्रह्मचारी संदीप भैया सरल एवं सहयोग संकलन अशोक शाकाहार ने किया।
    संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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