भारतीय जनता पार्टी का ग्वालियर संसदीय सीट का लोकसभा चुनाव सम्मेलन कल ग्वालियर के मेला परिसर में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं हुईं, जैसे ग्वालियर के बड़े पार्टी नेता जयभान सिंह पवैया ने सम्मेलन से दूरी बनाए रखी। श्री पवैया विधानसभा चुनाव हारने के बाद लगातार ग्वालियर में, विशेष रूप से पार्टी के ग्वालियर सांसद नरेन्द्र सिंह तोमर के संगठनात्मक कार्यक्रमों में गैर हाजिर होते रहे हैं। इस लोकसभा चुनाव कार्यकर्ता सम्मेलन में तोमर के विरोधी माने जाने वाले पार्टी पार्षद सतीश सिंह सिकरवार के समर्थकों ने उस समय अपने नेता के समर्थन में जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए , जब तोमर समर्थकों ने अपने नेता की जिंदाबाद करनी शुरू की। इससे यह संदेश भी गया कि सतीश ख्ेामा स्वयं को किसी से कम नहीं समझ रहा है। सम्मेलन में किसी भी वक्ता ने लोकसभा प्रत्याशी के रूप में नरेन्द्र सिंह तोमर का नाम नहीं लिया। मुख्य अतिथि केन्द्रीय राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी अपने भाषण में यह नहीं कहा कि आप लोगों को एक बार फिर नरेन्द्र सिंह तोमर को जीता कर लोकसभा में भेजना है।
इसका अर्थ तो यह हुआ कि ग्वालियर सीट पर भाजपा अपना उम्मीदवार बदल सकती है। क्योंकि विधानसभा चुनाव में ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। हालंाकि अभी तक यह तय है कि श्री तोमर ही ग्वालियर से चुनाव लड़ेंगे।
करैरा और पौहरी विधानसभा क्षेत्र (दोनो शिवपुरी जिले में ) भी ग्वालियर संसदीय सीट में शामिल हैं, लेेकिन कल केे ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र सम्मेलन में ेदोनो क्षेत्रों के कार्यकर्ता बहुत कम दिखाई दिए।
तोमर व पवैया के बीच आपसी अन्दरूनी मतभेद वर्षों से हैं। एक समय था जब पवैया की तूती बोलती थी। वह ग्वालियर सांसद थे और तोमर विधायक। तब भी और आज यानी एक दशक से जब तोमर सत्ता के लगभग शीर्ष पर हैं, तब भी दोनो के बीच मनमुटाव हैैं। २०१३ के विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद पवैया ने तोमर को साधने की जरूर कोशिश की थी, क्योंकि उन्हें यानी पवैैया को मंत्रीमंडल में आना था और उन्हें पता था कि तोमर की सिफारिश पर ही शिवराज उन्हें मंत्री बनाएंगे। इसी प्रयासों के तहत पवैया ने अपने द्वारा आयोजित किए जाने वाले वीरांगना लक्ष्मीबाई मेले में श्री तोमर को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित भी किया था।
कुछ समय बाद जब पवैया को मंत्रीमंडल में लिया गया तो पवैया खेमे को लगा कि पवैया को राज्यमंत्री बनाने का षडयंत्र था। सबने देखा, उस समय पवैैया रूठ गए थे। नरोत्तम मिश्रा ने उन्हें मनाया था। अंतत: वह कैबिनट मंत्री बनाए गए थे।
दोनो खेमों के बीच फिर कटुता बढ़ गयी।
अभी २०१८ के विधानसभा चुनाव में पवैया ने अपनेे ग्वालियर विधानसभा क्षेेत्र के कार्यकर्ता सम्मेलन में तोमर को मुख्य अतिथि के रूप में बलाया था। उन्हें अंदेशा था कि तोमर नहीं आएंगे, कोई बहाना कर देंगे। श्री पवैया उन्हें लेने उनके मेला रोड़ स्थित घर पहुंच गए थे।
चुनाव में पवैया हार गए तो उन्होंनेेे ग्वालियर क्षेत्र के बड़े नेता पर उनके लिए काम न करने का आरोप लगाया था।
सभी ने यही समझा कि निशाना श्री तोमर पर है। अब पवैया भी तोमर के लिए असहयोगात्मक रवैया अपना रहे हैं। हालांकि उनके पास दिल्ली प्रदेश सहप्रभारी के रूप में पार्टी काम का बहाना रहता है, लेकिन प्रश्र यह है कि ग्वालियर में जब पार्टी बेहद कमजोर स्थिति से गुजर रही हैै, और सभी नेताओं -कार्यकर्ताओं को मिल -जुलकर कार्य करने की जरूरत है, उस समय बाहर काम करने का क्या फायदा?
इसका अर्थ तो यह हुआ कि ग्वालियर सीट पर भाजपा अपना उम्मीदवार बदल सकती है। क्योंकि विधानसभा चुनाव में ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। हालंाकि अभी तक यह तय है कि श्री तोमर ही ग्वालियर से चुनाव लड़ेंगे।
करैरा और पौहरी विधानसभा क्षेत्र (दोनो शिवपुरी जिले में ) भी ग्वालियर संसदीय सीट में शामिल हैं, लेेकिन कल केे ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र सम्मेलन में ेदोनो क्षेत्रों के कार्यकर्ता बहुत कम दिखाई दिए।
तोमर व पवैया के बीच आपसी अन्दरूनी मतभेद वर्षों से हैं। एक समय था जब पवैया की तूती बोलती थी। वह ग्वालियर सांसद थे और तोमर विधायक। तब भी और आज यानी एक दशक से जब तोमर सत्ता के लगभग शीर्ष पर हैं, तब भी दोनो के बीच मनमुटाव हैैं। २०१३ के विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद पवैया ने तोमर को साधने की जरूर कोशिश की थी, क्योंकि उन्हें यानी पवैैया को मंत्रीमंडल में आना था और उन्हें पता था कि तोमर की सिफारिश पर ही शिवराज उन्हें मंत्री बनाएंगे। इसी प्रयासों के तहत पवैया ने अपने द्वारा आयोजित किए जाने वाले वीरांगना लक्ष्मीबाई मेले में श्री तोमर को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित भी किया था।
कुछ समय बाद जब पवैया को मंत्रीमंडल में लिया गया तो पवैया खेमे को लगा कि पवैया को राज्यमंत्री बनाने का षडयंत्र था। सबने देखा, उस समय पवैैया रूठ गए थे। नरोत्तम मिश्रा ने उन्हें मनाया था। अंतत: वह कैबिनट मंत्री बनाए गए थे।
दोनो खेमों के बीच फिर कटुता बढ़ गयी।
अभी २०१८ के विधानसभा चुनाव में पवैया ने अपनेे ग्वालियर विधानसभा क्षेेत्र के कार्यकर्ता सम्मेलन में तोमर को मुख्य अतिथि के रूप में बलाया था। उन्हें अंदेशा था कि तोमर नहीं आएंगे, कोई बहाना कर देंगे। श्री पवैया उन्हें लेने उनके मेला रोड़ स्थित घर पहुंच गए थे।
चुनाव में पवैया हार गए तो उन्होंनेेे ग्वालियर क्षेत्र के बड़े नेता पर उनके लिए काम न करने का आरोप लगाया था।
सभी ने यही समझा कि निशाना श्री तोमर पर है। अब पवैया भी तोमर के लिए असहयोगात्मक रवैया अपना रहे हैं। हालांकि उनके पास दिल्ली प्रदेश सहप्रभारी के रूप में पार्टी काम का बहाना रहता है, लेकिन प्रश्र यह है कि ग्वालियर में जब पार्टी बेहद कमजोर स्थिति से गुजर रही हैै, और सभी नेताओं -कार्यकर्ताओं को मिल -जुलकर कार्य करने की जरूरत है, उस समय बाहर काम करने का क्या फायदा?