राजनीतिक हलचल-मध्यप्रदेश में राजनीति का महाभारत ऐसा चला कि मीडिया से लेकर सोशल साइट्स और राजनीति की परख रखने और न रखने वालों की जुबान पर एक ही सवाल था कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस का कप्तान कौन होगा,इसके लिए कार्यकर्ता,विधायक, मंत्री और पार्टी पदाधिकारी अपने अपने आकाओं को ताज पहनाने के दिल्ली दरबार में हर संभवतः प्रयासरत थे,कुछ भजन गा रहे थे तो कुछ ईश्वर से प्रार्थना,कोई राजा के साथ था तो कोई सत्ता से हार चुके महाराज को विजय देखने के लिए लालायित था लेकिन दिल्ली दरबार में किसकी चल रही थी ये कोई नहीं भाँप पाया । एक बात तो सौ फीसदी उन लोगों के लिए सच साबित हुई होगी जो लंबे अरसे से राजनीति को समझते हैं कि दिल्ली वाली मैडम के यहाँ कमल की ही चलती है और चले भी क्यों न कमल गाँधी परिवार के साथ साये की तरह करीब तीन दशक से भी ज्यादा रहे हैं ।
सूत्रों की मानें तो पद की दौड़ में राजा महाराजा के बीच वर्चस्व की लड़ाई देख माहौल कुछ बिगड़ गया तो दिल्ली दरबार मे फैसला हुआ है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस अनाथ नहीं है । राजा महाराजाओं का युग नहीं है लोकतंत्र है तो फिर लोकतंत्र का नेता कमल ही मध्यप्रदेश कांग्रेस का नाथ उपयुक्त है, खबर है कि कमल फिलहाल कुर्सी पर जमे रहेंगे ।
सूत्रों की मानें तो पद की दौड़ में राजा महाराजा के बीच वर्चस्व की लड़ाई देख माहौल कुछ बिगड़ गया तो दिल्ली दरबार मे फैसला हुआ है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस अनाथ नहीं है । राजा महाराजाओं का युग नहीं है लोकतंत्र है तो फिर लोकतंत्र का नेता कमल ही मध्यप्रदेश कांग्रेस का नाथ उपयुक्त है, खबर है कि कमल फिलहाल कुर्सी पर जमे रहेंगे ।

