बांसवाड़ा-बाहुबली कॉलोनी जैन मंदिर में विराजित आर्यिका रत्न 105 अर्हम श्री माताजी गुरु मां ने अपने प्रवचन में कहा कि आत्म पर्यूषण पर्व के पहले दिन पर्यूषण पर्व का शुभागमन है। सारा देश इस पर्व की आराधना कर रहा है, सारा देश उपासना कर रहा है, भक्ति कर रहा है। एक बात याद रखना मुनि इस धर्म का पालन करते हैं। श्रावक को उत्तम धर्म क्षमा नहीं होता है। श्रावक इस धर्म की पालना नहीं करता बल्कि आराधना करता है, पूजा करता है, श्रद्धा करता है, क्षमा का मतलब सम शब्द संस्कृत में सम धातु से बना है। सम का मतलब सहन करना, क्षमा का अर्थ पृथ्वी होता है। जैसे पृथ्वी सभी के प्रदाधुओं को सहते हुए भी रत्न उगलती है। वैसे भी जो दूसरों में दुर्व्यवहार को सहने में समर्थ होता है व क्षमा का अवतार बनता है। क्षमा क्या क्रोध का निमित्त आने पर भी क्रोध ना करना यह क्षमा है। क्रोध को कभी कलह का रूप मत लेने देना और अगर कलह हो जाए तो मन में बेर की गांठ मत बांधों। माताजी ने कहा कि विरोध मत करो यह बहुत खतरनाक है, अगर अंदर बेर की गांठ बंधी है तो बाहर धर्म अर्थ व्यर्थ है। जानकारी चातुर्मास कमेटी के प्रवक्ता महेंद्र कवालिया ने दी।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी
