भीलवाडा-सौलह कारण भावना क्रम में प्राणी दर्शन विशुद्धि पूर्वक विनयवान बनते हुए तीसरी ’’निरतिचार शीलव्रत’’ भावना को धारण करता है। जैन दर्शन में हिंसादिक पापों से निवृत होकर अहिंसा, अचौर्य, सत्य आदि पालन करने को व्रत कहा गया है। इन व्रतों की रक्षा के लिए जो परिश्रम किया जाता है, उसे शीलव्रत कहा गया है।
यह बात गुरुवार काे बालयति निर्यापक मुनि विद्यासागर महाराज ने सुधासागर निलय में निरतिचार शील व्रत भावना पर प्रवचन के दौरान कही। उन्होंने कहा कि 18 हजार शीलवृत बताए गए हैं। जो सम्पूर्ण रूप से 14वें गुण स्थान में केवल भगवान के होते हैं। उन्होंने कहा कि भावना प्राणी काे प्रवृत्ति से निव्रति की ओर ले जाती है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी