बुंदेलखंड के संत गणेश प्रसाद वर्णी ने बनवाया था काशी में महाविद्यालय, आज जैन विद्या अध्ययन का श्रेष्ठ केंद्र

147वीं वर्णी जयंती विशेष 1908 में लक्ष्मीपुरा में हुई थी श्रीगणेश दिगंबर जैन संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना

बुंदेलखंड मूल के संत क्षुल्लक गणेश प्रसाद वर्णी की शनिवार को जयंती है। उन्हीं के प्रयासों से श्रुतपंचमी के दिन काशी बनारस में सन 1905 में महाविद्यालय की स्थापना हुई थी। उस समय काशी में जैन विद्या का कोई केंद्र न होने के कारण वर्णीजी ने अपनी इच्छाशक्ति से प्रथम दान में प्राप्त 1 रुपए के 64 पोस्टकार्ड के माध्यम से श्रेष्ठियों एवं विद्या प्रेमियों से मार्मिक अपील की। जिसके फलस्वरूप उनके दान से प्राप्त राशि से जैन विद्या के सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र स्याद्वाद महाविद्यालय की स्थापना हो पाई। इस महाविद्यालय ने पिछले 115 वर्षों में जैन प्राच्य विद्या के प्रसार से अद्वितीय ख्याति प्राप्त की है। बनारस में इसकी स्थापना के बाद 14 अन्य स्थानों पर शिक्षण संस्थाएं स्थापित की गई थी। जिनमें से सन 1908 में सागर में श्री गणेश दिगंबर जैन संस्कृत महाविद्यालय प्रमुख है। यह लक्ष्मीपुरा में स्थित है और वर्तमान में भी संचालित है। वहीं इसकी अन्य संस्थाएं द्रोणागिरी, बरुआसागर, अहारजी, मड़ावरा, शाहपुर, पटनागंज, मड़ियाजी, कटनी, ललितपुर, नैनागिर, पपौराजी, साढूमल झांसी में स्थापित हैं। इसके अलावा हस्तिनापुर, खतौली, गया, दिल्ली, सहारनपुर, फिरोजाबाद, इटावा आदि अनेक जगहों पर शिक्षण संस्थाएं स्थापित हुईं। इस महाविद्यालय का बुंदेलखंड के लोगों के लिए विशेष महत्व है। क्योंकि इसकी स्थापना करने वाले वर्णीजी का संबंध बुंदेलखंड से है। उनका जन्म मड़ावरा के हंसेरा गांव में वैष्णव हिंदू परिवार में हुआ था। वहीं जैनों के सर्वोच्च आचार्य विद्यासागर महाराज के शिक्षा और दीक्षा गुरु समाधिस्थ संत आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने 10 साल इसी महाविद्यालय में गुजारे और विपुल वाड्मय का सृजन कर जैन साहित्य की श्रीवृद्धि भी की। वहीं महात्मा गांधी, संत विनोबा भावे, डॉ. भगवानदास, दानवीर साहू, लंदन के डॉ. महेन्द्र राजा, जर्मनी के डॉ. हरमन जेकोबी, डॉ. संपूर्णानंद, आचार्य नरेंद्र देव, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, कवि मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी, बाबूराव विष्णु पराड़कर जैसी कई हस्तियां यहां आ चुकी हैं।
          संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी

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