अहंकार का त्याग कर, दूसरों के प्रति करुणा का भाव उत्पन्न होना ही उत्तम मार्दव धर्म - बाल ब्रह्मचारी महेंद्र भैया जी

कठोर परिणाम को कोमल करने का ही नाम है मार्दव धर्म - बाल ब्रह्मचारी महेंद्र भैया
पोहरी - जैन धर्म के दशलक्षण महापर्व शुरू हो चुके हैं श्री 1008 आदिनाथ जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र मे भक्त भक्ति भाव से यहाँ महापर्व मना रहे है प्रातः काल मे भक्त भक्ति पूर्वक भगवान के अभिषेक शांति धारा के बाद सामूहिक रूप से पूजन पाठ करते है शाम को संगीतमय महा आरती के प्रश्चात  बाल ब्रह्मचारी महेंद्र भैया घुवारा द्वारा 10 धर्म पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उत्तम  मार्दव धर्म के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने बताया कि जो कठोर परिणामो  को कोमल कर दो वही उत्तम मार्दव धर्म कहलाता है
मार्दव का अर्थ है नम्रता, कोमलता, सौम्यता, करुणा और उदारता. यह मृदु (कोमल) होने का भाव है, जो अहंकार को त्यागने और दूसरों के प्रति करुणा व संवेदनशीलता रखने से आता है. मार्दव व्यक्ति को विनम्र और दयालु बनाता है, जिससे वह दूसरों के दुख को समझता है और उनकी मदद करता है. जिस प्रकार से वृक्ष मे फल आने के बाद झुक जाता है लेकिन सूखा वृक्ष एवं मुर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकता है वो हमेसा अकड़ मे रहता है उत्तम मार्दव धर्म ऐसे व्यक्ति को कोमल बनता है
 रत्नकरण्ड श्रावकाचार मे आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने आठ प्रकार के मद बताए हैं ज्ञान पूजा कुल जाति धन बल वृद्धि रूप और ऐश्वर्य आठ प्रकार के मद होते हैं जो की आत्म कल्याण में बाधक होते हैं जब तक  हमारी आत्मा से दूर नहीं हो जाते हैं तब तक हम आत्म कल्याण नहीं कर सकते हैं इसको ही उत्तम मार्दव धर्म कहते है

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