आंवा -श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र आवां में चल रहे चातुर्मास में रविवार को मुनि पुंगव 108 सुधा सागर जी महाराज ने प्रवचन में कहा कि आलोचना से कोई भी नहीं बच सकता है। जो मनुष्य जितना बड़ा होता है, उसकी उतनी अधिक आलोचनाएं होती है। इसलिए आलोचना से घबराकर धैर्य नहीं खोना चाहिए। आलोचना दो प्रकार की रचनात्मक और विध्वंसात्मक होती है। प्रत्येक मनुष्य को जीवन में किसी न किसी समय आलोचना का शिकार होना ही पड़ता है। आलोचक को कभी शत्रु नहीं मानना चाहिए कि वह बदनाम करने के लिए लांछन लगा रहा है। ऐसा हमेशा नहीं होता है। भ्रांतियां भी कारण हो सकती हैं।
घटना का उद्देश्य सही रुप से न समझ पाने पर लोग मोटा अनुमान यही लगा लेते हैं कि शत्रुता वश ऐसा कहा जा रहा है। निंदा करने वालों का इसमें घाटा ही रहता है। यदि उसकी बात सत्य है तो भी लोग चौकन्ने हो जाते हैं कि कहीं हमारा कोई भेद इसके हाथ तो नहीं लग गया जिसे यह सर्वत्र बकता फिरे। झूठी निंदा बड़ी बुरी मानी जाती है। विद्वेष उसका कारण माना जाता है। निंदा सुनकर क्रोध आना और बुरा लगना स्वाभाविक है, क्योंकि इससे स्वयं के स्वाभिमान को चोट लगती है, पर समझदार लोगों के लिए उचित है कि ऐसे अवसरों पर संयम से काम ले। आवेश में आकर विवाद न खड़ा करें। यह देखें कि ऐसा अनुमान लगाने का अवसर उसे किस घटना या कारणवश मिला। यदि उसमें व्यवहार-कुशलता संबंधी भूल रही हो तो उससे बचकर रहें। यदि बात सर्वथा मनगढ़ंत सुनी-सुनाई है तो अवसर पाकर यह उन्हीं से पूछा जाना चाहिए कि उसने इस प्रकार गलतफहमी क्यों उत्पन्न की, एक बार कारण तो पूछ लिया होता। इतनी छोटी बात से उसका मुख भविष्य के लिए बंद हो जाएगा और यदि कही बात सत्य है तो आत्मसुधार की बात सोचनी चाहिए। इस संसार में जल, वायु पर्याप्त मात्रा में है, लेकिन मनुष्य पर निर्भर करता हैं कि वह उसका किस प्रकार उपयोग करता है। जिस प्रकार जल को कीचड़ में डालने से वह कीचड़ बन जाता हैं और उसी जल को भगवान पर अभिषेक करने से वह गंधोदक बना सकता हैं। दानव से मानव बनाने के लिए स्कूल से संस्कार लिए जाते हैं और मानव से भगवान बनाने के लिए तीर्थ बनाए जाते हैं। मुनिश्री ने कहा कि आज हर व्यक्ति प्रशंसा का भूखा है, वैसे देखा जाए तो प्रशंसा जो पचा नहीं पाते, वह प्रशंसा सुनकर अहंकार में चूर-चूर हो जाते है। दूसरा संदेश है लोभ, लालच से अपनी रक्षा करो। लोभ, लालच में आकर व्यक्ति क्या-क्या नहीं करता, पद का लोभ, धन का लोभ आदि अनेक लोभ है जिनके कारण व्यक्ति का जीवन बर्बाद हो जाता है। चला जग में सिकन्दर जब, साथ में हाली बहाली थे।
आलोचना से कोई नहीं बच सकता - मुनि श्री सुधासागर
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Monday, July 30, 2018
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