वैसे तो इतिहास में वर्तमान शिवपुरी नगरी को यह नाम दिए जाने को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं लेकिन साहित्यकारों और इतिहासकारों के अपने अपने तर्क हैं। सबसे ज्यादा इस नाम को लेकर यह तर्क दिया जाता है कि 10वीं और 11वीं सदी में यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में दो दर्जन से अधिक शिव मंदिरों का निर्माण कराया गया और ऐसा माना जाता है कि यहां शिव उपासना के समर्थकों की संख्या प्रारंभ से ही अधिक रही।
हालांकि कालांतर में मुगल शासन के दौरान औरंगजेब ने यहां के तमाम शिव मंदिरों को जीर्णशीर्ण करने का कार्य किया। जिसमें पोहरी का प्राचीन केदारेश्वर मंदिर के अलावा नरवर के भी तमाम मंदिर शामिल थे। मुगलकाल में सीपरी नाम दिया गया जो कई सदियों तक जारी रहा यहां तक कि सिंधिया स्टेट के शासन में भी इसे सीपरी ही कहा जाता रहा बाद में आजादी के बाद गजट नोटिफिकेशन कर इसे शिवपुरी नाम दिया गया। जिसका उल्लेख भी इतिहास में दर्ज है।
इसके पीछे एक तर्क यह भी है कि सिंधिया राजवंश के शासक शिव भक्त थे और इस नामकरण में उनकी इस आस्था का भी अहम स्थान माना जाता है।
शिवपुरी में स्थापित सिद्धेश्वर मंदिर की बात की जाए तो यह बहुत ज्यादा प्राचीन नहीं हैं वर्ष 1920 में यहां जिस शिव मूर्ति की स्थापना की गई दरअसल वह पोहरी के परासरी स्थित खदानों में मिली थी और शिव भक्तों ने इसे यहां स्थापित किया। 10वीं, 11वीं शताब्दी में अंचल में शिव मंदिरों का हुआ था।