लेख-पहले विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव । दो समर आने हैं और योद्धा इस समर को जीतने के लिए अपने अपने दांव - पेच सीखने में जुट गए हैं । मध्यप्रदेश आज भी राजनीतिज्ञों के लिए एक ऐसा प्रदेश है जहां समस्याएं स्थाई रूप से अपनी जड़ें मजबूत कर चुके हैं और राजनेता इनके निदान के लिए आश्वासन की पोटली आसानी से खोल सकते हैं । पिछले तीन बार से जनता का आशीर्वाद प्राप्त करने वालों को एक बार फिर जनआशीर्वाद याद आ गया ...... पिछली बार तो घोषणाओं की बौछार ही पड़ी थी लेकिन इस बार तो शिव रथ पर सवार होकर आशीर्वाद के लिए उठने वाले हाथों से करीब 20 फीट ऊंचाई से विकास की भागीरथी बहाने के लिए घोषणाओं की झमाझम बारिश कर रहे हैं । साल 2018 चुनावी पर्व का साल है ऐसे में सभी दलों के नेता सत्ता की मलाई खाने के लिए सभी हथकंडे अपना रहे हैं । इसके लिए गरीब के घर फाइव स्टार से मंगाई हुई रोटी खा रहे हैं तो चाय की चुस्की लेकर मुंह पौंछकर चलते बन रहे हैं । जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं नए-नए योद्धा राजनीतिक गलियारों में बिगुल बजाते हुए घूम रहे हैं । विपक्ष के बिल में सांप टूटने की वजाय अपनी ही आस्तीन को काटकर फेंकने की जुगाड़ में हैं । मध्यप्रदेश नदियों का मायका है, मोक्षदायिनी क्षिप्रा से लेकर नर्मदा , जो कल-कल करती बहती थी वह सूख रही है.. वनक्षेत्र का धनी मध्यप्रदेश अंधाधुंध कटाई को सालों से झेल रहा है । रेत माफियाओं ने रेत खनन इस अंजाम तक पहुंचा दिया है कि नदिया कोहनी तक हाथ जोड़कर अपने अस्तित्व की रक्षा की भीख मांग रही हैं । मध्यप्रदेश में जलवायु परिवर्तन का काला साया मंडराने लगा है । मौसम का असंतुलन कभी सूखा तो कभी अतिवृष्टि का समीकरण रचने लगा है । जब पर्याप्त बारिश नहीं होगी तो फसल भी नहीं होगी और किसान अनाज की जगह जहर खा रहा है और पेड़ों से लटक रहा है । सरकार 5 बार कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त कर अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही है । दुनिया भले ही 21वीं सदी में कदम रखते हुए विकास की नई सीढ़ियां चढ़ रहा है लेकिन मध्यप्रदेश आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है ।
मध्यप्रदेश के हालात ये है कि स्कूल हैं लेकिन शिक्षक नहीं है ...अस्पताल हैं लेकिन डॉक्टर और दवाइयां नहीं है ......पुलिस है लेकिन सुरक्षा नहीं है..... प्रशासन है लेकिन बेलगाम है । बिजली से हर गांव को रोशन करने वालों का दावा ठोकने वालों की सरकार में कई गांव रोशनी की एक किरण के मोहताज हैं और सत्ता में इन को हटाकर आने की चाहत रखने वाले भी वो लोग हैं जिनके राज में बिजली को देखने के लिए चिमनी की सहायता लेनी पड़ती थी । आज सरकारी दफ्तरों में घूसखोरी इतनी बढ़ गई है कि भ्रष्टाचार करने वालों की आत्मा उन्हें नहीं झकझोरती है या फिर वे पहले ही अपनी आत्मा को बेच चुके होते हैं । मध्यप्रदेश सरकार आज घाटे में है , कर्ज के बोझ तले दब कर रही है । विकास कार्यों के लिए सरकार का खजाना खाली है और ढाई करोड़ के रथ पर सवार होकर आशीर्वाद यात्रा में पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं । ऐसा नहीं कि मध्यप्रदेश को केंद्र की यूपीए सरकार से पैसा नहीं मिलता था बावजूद इसके मुख्यमंत्री केंद्र की पूर्व सरकार में धरने पर बैठ गए थे लेकिन आज ना तो प्रदेश सरकार के पास पैसा है और ना केंद्र सरकार दे रही है.... विडम्बना भी देखिए धरने पर बैठे तो कैसे ..?? क्या अपनों से बगावत कर लें..?? मध्यप्रदेश में किसान अपने हक के लिए लड़ता है तो या तो सीने पर गोली मिलती है या नंगे बदन पर पुलिस की लाठी । यदि जनहित के काम दिखते तो जनता आशीर्वाद दे ही देती मांगना नहीं पड़ता । उद्योग ठप पड़े हैं, विगत 14 साल में एक भी ऐसा नया उद्योग स्थापित नहीं हुआ जिसने प्रदेश के युवाओं को रोजगार दिया हो, जबकि प्रदेश के मुखिया युवाओं की सरकार कहते नहीं थकते तो वही साल दर साल इंवेस्टर्स मीट कराकर प्रदेश की अमूल्य जमीन को औने-पौने के भाव उद्योगपतियों को सौंप रहे हैं ।
मध्यप्रदेश के हालात ये है कि स्कूल हैं लेकिन शिक्षक नहीं है ...अस्पताल हैं लेकिन डॉक्टर और दवाइयां नहीं है ......पुलिस है लेकिन सुरक्षा नहीं है..... प्रशासन है लेकिन बेलगाम है । बिजली से हर गांव को रोशन करने वालों का दावा ठोकने वालों की सरकार में कई गांव रोशनी की एक किरण के मोहताज हैं और सत्ता में इन को हटाकर आने की चाहत रखने वाले भी वो लोग हैं जिनके राज में बिजली को देखने के लिए चिमनी की सहायता लेनी पड़ती थी । आज सरकारी दफ्तरों में घूसखोरी इतनी बढ़ गई है कि भ्रष्टाचार करने वालों की आत्मा उन्हें नहीं झकझोरती है या फिर वे पहले ही अपनी आत्मा को बेच चुके होते हैं । मध्यप्रदेश सरकार आज घाटे में है , कर्ज के बोझ तले दब कर रही है । विकास कार्यों के लिए सरकार का खजाना खाली है और ढाई करोड़ के रथ पर सवार होकर आशीर्वाद यात्रा में पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं । ऐसा नहीं कि मध्यप्रदेश को केंद्र की यूपीए सरकार से पैसा नहीं मिलता था बावजूद इसके मुख्यमंत्री केंद्र की पूर्व सरकार में धरने पर बैठ गए थे लेकिन आज ना तो प्रदेश सरकार के पास पैसा है और ना केंद्र सरकार दे रही है.... विडम्बना भी देखिए धरने पर बैठे तो कैसे ..?? क्या अपनों से बगावत कर लें..?? मध्यप्रदेश में किसान अपने हक के लिए लड़ता है तो या तो सीने पर गोली मिलती है या नंगे बदन पर पुलिस की लाठी । यदि जनहित के काम दिखते तो जनता आशीर्वाद दे ही देती मांगना नहीं पड़ता । उद्योग ठप पड़े हैं, विगत 14 साल में एक भी ऐसा नया उद्योग स्थापित नहीं हुआ जिसने प्रदेश के युवाओं को रोजगार दिया हो, जबकि प्रदेश के मुखिया युवाओं की सरकार कहते नहीं थकते तो वही साल दर साल इंवेस्टर्स मीट कराकर प्रदेश की अमूल्य जमीन को औने-पौने के भाव उद्योगपतियों को सौंप रहे हैं ।
नौकरियां तो सरकार ने दीं लेकिन भ्रष्टाचार की भेंट इस प्रकार चढ़ी कि कम अंक वालों को नौकरी और अधिक अंक वालों को बाहर का रास्ता दिखा दिया । प्रदेश के विद्यालय अतिथियों के भरोसे हैं और लाखों की तादात में D.Ed, B.Ed करने वाले युवा शिक्षक भर्ती परीक्षा की बाट जोह रहे हैं लेकिन मामा को शिक्षा की खबर है और ना शिक्षकों की । कक्षा एक से PhD तक की निशुल्क शिक्षा का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार ने शिक्षा का स्तर उस हद तक गिरा दिया है कि मध्य प्रदेश में शिक्षा का स्तर जमीन से नहीं उठ पा रहा है । कक्षा 1 से 8 तक फैल न करके बच्चों की नींव को कमजोर कर दिया अब इस पर उच्च शिक्षा का महल बन पाना मुश्किल है ,बावजूद इसके कक्षा दसवीं में 6 में से पांच विषय में पास , 20% अंक बाल सभाओं के और रुक जाना नहीं जैसी योजनाओं ने बच्चों को मध्यान भोजन तक में रोक कर रख दिया है । सरकार जनता को मजबूत ना बनाकर मजबूर बनाने का कार्य कर रही है । शिवराज सरकार के कई कार्य ऐसे हैं जो वास्तव में सबका विकास कर सकते थे लेकिन सब अफसरशाही की भेंट चढ़ गए ।
2018 में राजनीति के महाकुंभ में तीन बार के कार्यकाल के दम पर भाजपा जनता से आशीर्वाद मांग रही है तो 15 साल का वनवास काट चुकी कांग्रेस राम राज्य स्थापित करने का भरोसा दिला रही है और प्रदेश सरकार की पोल खोल रही है । जहां भाजपा की जीत आसान नहीं है तो कांग्रेस कमल को कुचलने हाथी को भी साथी बनाने की जुगाड़ में है और साइकिल की सवारी करने को भी तैयार है । भाजपा का चेहरा केबल शिवराज सिंह हैं वह बात अलग है कि अमित शाह ने कहा कि पार्टी इस बार चेहरे पर नहीं संगठन पर चुनाव लड़ेगी । वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के राजा महाराजा सत्ताधीश बनने के लिए आपस में उलझे पड़े हैं तो मध्यप्रदेश कांग्रेस के नाथ स्वयं इसके लिए तैयारी में लगे हैं । ऐसे में जनता असमंजस में है कि हम हाथ का साथ दे भी दें लेकिन हमारा मुखिया कौन होगा..?? यह तो स्पष्ट हो । दोनों ही मुख्य दल किसी न किसी प्रकार सत्ता हासिल करना चाहते हैं एक ने अपने ही सर्वे में हारने वाले विधायक और मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा कर नए चेहरों को मैदान में उतारने का मन बना लिया है तो दूसरे ने 30 फीसदी युवाओं को चुनावी समर में उतारने की पैरवी की है । यदि कमल खिलता है तो श्यामला हिल्स पर शिव ही विराजमान होंगे और मध्य प्रदेश की राजनीति में राज करेंगे और यदि उनके बदलाव की चाहत में जनता हाथ को मजबूत करती है तो यह आने वाला वक्त ही बता पायेगा कि मध्यप्रदेश का नाथ कौन होगा राजा या महाराजा ,..?? फिलहाल तो चाणक्य नीति से सभी राजनेता और दल अपनी अपनी रणनीति बनाने में व्यस्त हैं ।
ये लेखक के अपने निजी विचार हैं ।
2018 में राजनीति के महाकुंभ में तीन बार के कार्यकाल के दम पर भाजपा जनता से आशीर्वाद मांग रही है तो 15 साल का वनवास काट चुकी कांग्रेस राम राज्य स्थापित करने का भरोसा दिला रही है और प्रदेश सरकार की पोल खोल रही है । जहां भाजपा की जीत आसान नहीं है तो कांग्रेस कमल को कुचलने हाथी को भी साथी बनाने की जुगाड़ में है और साइकिल की सवारी करने को भी तैयार है । भाजपा का चेहरा केबल शिवराज सिंह हैं वह बात अलग है कि अमित शाह ने कहा कि पार्टी इस बार चेहरे पर नहीं संगठन पर चुनाव लड़ेगी । वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के राजा महाराजा सत्ताधीश बनने के लिए आपस में उलझे पड़े हैं तो मध्यप्रदेश कांग्रेस के नाथ स्वयं इसके लिए तैयारी में लगे हैं । ऐसे में जनता असमंजस में है कि हम हाथ का साथ दे भी दें लेकिन हमारा मुखिया कौन होगा..?? यह तो स्पष्ट हो । दोनों ही मुख्य दल किसी न किसी प्रकार सत्ता हासिल करना चाहते हैं एक ने अपने ही सर्वे में हारने वाले विधायक और मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा कर नए चेहरों को मैदान में उतारने का मन बना लिया है तो दूसरे ने 30 फीसदी युवाओं को चुनावी समर में उतारने की पैरवी की है । यदि कमल खिलता है तो श्यामला हिल्स पर शिव ही विराजमान होंगे और मध्य प्रदेश की राजनीति में राज करेंगे और यदि उनके बदलाव की चाहत में जनता हाथ को मजबूत करती है तो यह आने वाला वक्त ही बता पायेगा कि मध्यप्रदेश का नाथ कौन होगा राजा या महाराजा ,..?? फिलहाल तो चाणक्य नीति से सभी राजनेता और दल अपनी अपनी रणनीति बनाने में व्यस्त हैं ।
ये लेखक के अपने निजी विचार हैं ।
लेखक-इंजी. वीरबल सिंह "वीर"

