इतिहास साक्षी है भारत ने अतिक्रमण नहीं, प्रतिक्रमण किया:आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

अभिषेक जैन खजुराहो-आचार्य श्री विधासागर जी महाराज  ने अपने प्रवचनों में कहा कि भारतीय संस्कृति  की और ध्यान आकृष्ट करते हुये कहा भारतीय संस्क्रती अतिक्रमण के बजाए प्रतिक्रमण को समर्थन करती है। उन्होंने प्रतिक्रमण के महत्व का वर्णन किया।
आचार्यश्री ने श्रावको  को संबोधित करते हुए कहा कि सबको संसार को छोड़ना है। सब छोड़ना चाहते हैं तो बाते हैं- यदि धीरे धीरे मोह को तोड़ोगे तो धीरे धीरे मिलेगा। जब सब छोड़ोगे तभी सब प्राप्त कर सकते हो। एक साथ छोड़ नहीं पाते क्योंकि गांठ बंधी हुई है। जिसका विवाह हुआ, उनसे पूछ लो। जब फेरे पड़ते हैं उस समय जो पल्ला होता है। एक दूसरे की उसमें गांठ बांध दी जाती है। अब एक नहीं खिसक सकते, दोनों आएंगे। क्यों ठीक कर रहा न । उन्होंने कहा कि उस गांठ को ज्यादा कस कर नहीं बांधा जाता। मतलब जब चाहे उसे खोल सकते हैं। जब छोड़ना ही है तो घर से वह बाहर निकल जाता है। धीरे-धीरे स्वामित्व को छोड़ता चला जाता है। इसी प्रकार का अभ्यास करता रहता है। मेरा साम्राज्य मेरे पर है, पर ये साम्राज्य करना अच्छा नहीं, यह इतिहास है। एक व्यक्ति हमारे सामने दूर्लभ दुर्लभ इतिहास की बात हमारे सामने लाकर देता है, उसी में से एक बात कह रहा हूूं।
कृतदोष निराकरण प्रतिक्रमणम:के द्वारा  समझाया
: उन्हाेने कहा कि 15 हजार वर्ष का इतिहास खोलकर देख लें, भारत ने किसी भी राष्ट्र पर अतिक्रमण नहीं किया। हां दूसरे राष्ट्र ने यदि भारत पर अतिक्रमण किया तो यह प्रतिक्रमण लेता है। यह सिद्धांत है, भारत का। मुनि आर्यिका को तो प्रतिदिन तीन बार प्रतिक्रमण करना ही होता है। मतलब मात्र प्रतिक्रमण का पाठ नहीं किया जाता। भावों से प्रतिक्रमण करते हैं। कहा भी गया है- कृतदोष निराकरण प्रतिक्रमणम। दोषों को दूर करने के लिए प्रतिक्रमण किया जाता है। यह संस्कार भारत में ही है।
गांठ को कसकर नहीं, थोड़ा ढीला बांधो-गाठ के उदाहरण द्वारा समझाया  गांठ पर डबल नहीं बांधो, अपितु उस गांठ को थोड़ा सा ढीला करो। आप अकेला अवतरे, दो अर्थ हैँ, इस पाठ में - एक तो स्वयं अकेले ही जनम लिया अकेले ही जाना है। पूरा कुनवा साथ नहीं जा सकता। दूसरा जो अकेला हो जाता है, वह तर जाता है। जैसे एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र जाते समय वीजा बनवाया जाता है। वीजा से ही उस राष्ट्र में प्रवेश मिला है। यहां की मुद्रा यहीं रह जाती है। इसी प्रकार आत्मा के गौरव के साथ रहना है, तो अभी से अपनी तैयारी करना शुरू कर दी। भारत ने 15 हजार वर्ष अतिक्रमण नहीं किया, जंगल में भले ही रहना पड़ा किंतु किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। मांगा नहीं, न ही छीना झपटी की है
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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