धर्म को समझने से आती है भोगों से विरक्ति : आर्यिका विज्ञानमति माताजी

अभिषेक जैन सागर- जीवन के चार पुरुषार्थों में पहला पुरुषार्थ धर्म है। जब तक हम धर्म को नहीं जानेंगे। तब तक हमारी रूचि धर्म के प्रति नहीं बढ़ेगी। जैसे ही रूचि बढ़ती है, हमें भोगों से विरक्ति होने लगती है। यह बात आर्यिका विज्ञानमति माताजी  ने नेहानगर जैन मंदिर में आयोजित धर्मसभा में कही।
उन्होंने कहा कि संसार एक मायाजाल है। यदि हम लोभ वश इसमें फंसते गए तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। लेकिन जब सच्चे गुरुओं का सत्संग मिलता है, तो धर्म का वास्तविक स्वरूप समझ में आने लगता है। हमारा लक्ष्य जीवन मरण के चक्र से मुक्ति पाना है। इसका ज्ञान होने पर हम धर्मात्मा बनने लगते हैं। मित्र यार ये संसार के साथी हो सकते हैं। माता पिता जन्म दे सकते हैं। लेकिन आठ वर्ष की अवस्था के बाद तो हमारी अंतर आत्मा जागृत होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहती है। लेकिन भौतिक सुखों के मायाजाल में हम आत्मिक सुख से भटक जाते हैं।
  संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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