राजनीतिक हलचल-मध्य प्रदेश की राजनीति में राजघरानों का ग्लैमर बरकरार है। लोकतंत्र के रंग में रंग चुके इन रजवाड़ों ने प्रदेश की सियासत में वर्षों से अपना इकबाल कायम कर रखा है। सत्ता चाहे किसी भी दल की हो, राजघराने अपने रसूख का अहसास करा ही देते हैं। कोई लोकसभा कोई राज्यसभा तो कोई विधानसभा में पहुंचकर आज भी 'सरकार" की भूमिका में है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया-विदेश से एमबीए करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को ग्वालियर ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी समर्थक महाराज कहकर ही पुकारते हैं। वे कांग्रेस के बहुमत में आने पर मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जाते हैं। सिंधिया राजघराने का असर मप्र से लेकर राजस्थान तक फैला हुआ है। उनके पिता माधवराव सिंधिया गांधी परिवार के बेहद नजदीक थे। कई बार सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया जनसंघ और भाजपा की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं।
यशोधराराजे सिंधिया-शिवराज सरकार की कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की बहन हैं। वे शिवपुरी से विधायक हैं। उनके भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में हैं और उसी इलाके में ही राजनीति करते हैं, लेकिन दोनों कभी एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार नहीं करते और न ही एक-दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कुछ बोलते हैं।
दिग्विजयसिंह-लगातार दस साल तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता दिग्विजयसिंह राघौगढ़ रियासत से जुड़े रहे हैं। समर्थक उन्हें आज भी राजा साब के नाम से पुकराते हैं। राघौगढ़ कभी ग्वालियर राजघराने का हिस्सा था। दिग्विजय सिंह सार्वजनिक रूप से परंपरा के मुताबिक ग्वालियर राजघराने के प्रति सम्मान दिखाने में कभी कमी नहीं छोड़ते हैं। हालांकि सूबे की सियासत में ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक घेराबंदी में भी दिग्विजय सिंह ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।
जयवर्धन सिंह-जयवर्धन सिंह को दिग्विजय सिंह का राजनीतिक वारिस कहा जा सकता है। वे सिंह के इकलौते बेटे हैं। अपने पिता की परंपरागत सीट राघौगढ़ से वे दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेता से राजनीति का ककहरा सीखने वाले जयवर्धन सिंह को इस बार अपने पिता का उतना साथ नहीं मिल पाएगा, क्योंकि सिंह ने उन्हें बता दिया कि इस बार उन्हें खुद के दम पर चुनाव लड़ना होगा।
अजय सिंह-कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह, दिग्विजय सिंह की दो सरकारों में मंत्री और दो बार विधानसभा में नेता विपक्ष रह चुके हैं। उनका विंध्य की राजनीति में अच्छा खासा असर है। अर्जुन सिंह का संबंध चुरहट के राजपरिवार से रहा है। उनके पिता राव शिव बहादुर सिंह भी मप्र सरकार में मंत्री थे, लेकिन लगता है कि दादा और पिता की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले अजय सिंह परिवार में अंतिम राजनेता हो सकते हैं। उनके बेटे अरुणोदय सिंह राजनीति की जगह बॉलीवुड में अपनी जगह बना चुके हैं।
पुष्पराज सिंह-मप्र के राजघरानों में रीवा राजघराने का अपना विशेष महत्व है। वहां के पूर्व महाराज मार्तंड सिंह भी राजनीति में सक्रिय थे। इस परंपरा को उनके पुत्र पुष्पराज सिंह ने आगे बढ़ाया। दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे पुष्पराज सिंह हाल ही में दोबारा कांग्रेस में लौटे हैं। पुष्पराज सिंह के पुत्र दिव्यराज सिंह वर्तमान में सिरमौर से भाजपा विधायक हैं। पुष्पराज सिंह ने आज से 10 साल पहले 2008 में कांग्रेस से नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।
गायत्री राजे पंवार-देवास के पंवार राजघराने से ताल्लुक रखने वाली गायत्री राजे पंवार वर्तमान में विधायक हैं। वे अपने पति महाराज तुकोजीराव पंवार की राजनीतिक विरासत को सहेज रही हैं। तुकोजीराव लंबे समय तक प्रदेश की सियासत में सक्रिय रहे। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी को टिकट दिया गया। पंवार राजघराने पर राजमाता सिंधिया को खासा प्रभाव रहा है।
और भी कई राजघराने हैं सक्रिय
इसके अतिरिक्त धार से करण सिंह पंवार एक बार कांग्रेस से विधायक चुने जा चुके हैं। छतरपुर महाराज के परिवार के प्रतिनिधि के तौर विक्रम सिंह नातीराजा भी राजनीति में सक्रिय हैं। वे राजनगर विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक हैं। मानवेन्द्र सिंह, नागेन्द्र सिंह, कुंवर विजय शाह समेत और भी कई नाम हैं जो पूर्व रियासतों से जुड़े रहे हैं और राजनीति में भी उनका अच्छा खासा रसूख है।