पूजा को रूटीन का कार्य मत बनाइये बल्कि रूटीन बदलने का माध्यम बनाइये मुनि श्री प्रमाण सागर

अभिषेक जैन रतलाम-पूजा, पाठ, उपासना, धार्मिक क्रियाएं हमारे चित्त की शुद्धि का माध्यम है। जीवन में वही प्रार्थना जीवित कहलाती है जो हमारे मन से प्रकट हो, प्राणों से जुड़ी हो। पूजा भगवान से अनुराग बढ़ाने का माध्यम है। पूजा जीवन में सकारात्मकता का विकास करती है। संस्कारवश पूजा सार्थक होती है और परिस्थितिवश की पूजा दिखावा है।
यह बात लोकेंद्र भवन में मंगलवार को मुनिश्री 108 प्रमाण सागरजी ने कही। उन्होंने कहा भगवान से संवाद का माध्यम पूजा है पूजा से जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आते हैं। पूजा को जीवन में रूटीन का कार्य मत बनाइए बल्कि अपने जीवन का रूटीन बदलने का माध्यम बनाइए। ऐसा करने से आपकी चर्या-क्रिया बदल जाएगी, प्रवृति परिमार्जित होगी और जीवन धन्य हो जाएगा। बंधी-बंधाई पूजा कि जरूरत नहीं जब मौका मिले पूजा करो। कभी भी पूजा की जा सकती है, प्रभु से प्रेम को इतना प्रगाढ़ बनाओ, जब आंखें बंद हो, ध्यान हो जाए हृदय के उद्गार प्रकट हो जाए बस हो गई पूजा। धार्मिक क्रियाएं पवित्रता के आधार पर होती है, सच्चा धर्म क्रिया नहीं भाव है। प्रेम बढ़ाने के लिए पूजा करो, जीवन के सारे आकर्षण छूट जाएंगे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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