राजनीतिक हलचल-मध्यप्रदेश के सूबे की राजनीति में वैसे तो कांग्रेस और भाजपा ने सत्ता की मलाई खाई है । कभी 10 साल तक कांग्रेस के दिग्गी राजा दिग्गविजय रहे तो उसके बाद संत उमा से लेकर कमल दल के बाबूजी और शिव-राज लोगों के दिल और दिमाग में बस गया लेकिन 15 साल में वही मुख्यमंत्री, वही मंत्री और उन्हीं मंत्रियों को हरबार वही विभाग.... देखकर और सुनकर जनता का मन भर गया है और अब शायद बदलाव के मूड में है ।
दलितों की राजनीति करने वाली मायावती ने उत्तरप्रदेश में पहली बार भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई तो वक़्त वक़्त पर कांग्रेस-भाजपा को सांपनाथ और नागनाथ कहने से गुरेज नहीं रखा । वैसे तो मध्यप्रदेश में बहुजन बहुत है लेकिन बहुजन समाज पार्टी का कोई खास रुतवा नहीं है, हरबार दो-चार विधायक बनाकर अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है । इस बार हर सीट पर बसपा ने त्रिकोणीय मुकाबला बनाकर विधानसभा चुनाव को और अधिक रोचक बना दिया है ।
मुरैना जिले की जौरा विधानसभा सीट एक समय में चर्चा का विषय इसलिए थी क्योंकि आज़ादी के बाद से ही भाजपा अपना कमल नहीं खिला सकी लेकिन 2013 में भाजपा को सूबेदार मिला तो विधायक भी । उस दौर में जब 2008 में शिवराज सिंह का खुमार जनता के सिर चढ़कर बोल रहा था उस समय भी जौरा ने मनीराम धाकड़ को जिताकर हाथी को भोपाल भेज दिया था । 2013 में हाथी एक बार फिर मनीराम ने त्रिकोणीय मुकाबला दिया लेकिन हार का मुँह देखना पड़ा । इस बार पार्टी ने एक बार फिर अपने सच्चे सिपाही पर भरोसा जताया है जनता इस गरीब प्रत्याशी के लिए चंदा इकट्ठा कर वोट बैंक बढ़ाने तक के लिए पसीना बहा रही है ।
सबसे मजबूत पक्ष मनीराम धाकड़ के लिए यह है कि क्षेत्र की जनता मौजूदा विधायक से काफी नाराज तो है ही और पार्टी के सर्वे विधायक की हालत पतली बताई जा रही थी तब भी पार्टी ने टिकिट देकर अन्य दावेदारों को नाराज कर भितरघात की आशंका को बढ़ा दिया है । वहीं बसपा की ओर से जौरा में केवल दो ही दावेदार बताए जा रहे थे जिसमें मानवेन्द्र सिंह सिकरवार जो कि सुमावली से प्रत्याशी बनाये गए हैं ऐसे में मनीराम धाकड़ के लिए भितरघात जैसी कोई स्थिति नहीं है और पार्टी का हर एक कार्यकर्ता मनीराम धाकड़ के लिए रात दिन जनसंपर्क कर रहा है तो मतदाता का एक ही कहना है कि मनीराम भैया ने अगर अच्छा नहीं किया होगा तो बुरा भी किसी का नहीं किया है ,ऐसे में जौरा का हाथी बलवान ही दिखाई पड़ता है । अब ये तो आने वाला वक़्त ही बता पाएगा कि राजनीति का ऊँट किस ओर करवट बदलेगा, हाथ मजबूत होगा या कमल खिलेगा या फिर हाथी सबको धूल चटाकर भोपाल में दस्तक देगा ।