अकेला विज्ञान विनाशकारी सिद्ध हो सकता है, अतः विज्ञान पर अध्यात्म का अंकुश जरूरी है: मुनिश्री प्रयोग सागर जी

अभिषेक जैन खुरई -प्राचीन जैन मंदिर में मुनिश्री प्रयोगसागर जी  महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि विज्ञान ने मनुष्य को शक्ति दी है। उसने संचार यंत्र एवं द्रुतगामी वाहनों का निर्माण कर सारी दुनिया को एक कमरे में समेटकर रख दिया है। मानव शरीर के प्रत्येक अंग के बड़े-बड़े सफल आॅपरेशन होने लगे हैं।
कृत्रिम मानव बना दिया है। कम्प्यूटर बनाकर मनुष्य का अस्तित्व बोना कर दिया है और तो और चांद पर भी पहुंच गया है पर इससे क्या हुआ।
यदि मनुष्य को अपने पड़ोसी के साथ ही शांति से रहना न आए तो यही कहेंगे कि उसका दिमाग तो बड़ा हुआ है मगर दिल छोटा हो गया है। तन तो उजला हुआ है लेकिन मन काला हो गया है। उन्होंने कहा कि अकेला विज्ञान विनाशकारी सिद्ध हो सकता है, अतः विज्ञान पर अध्यात्म का अंकुश जरूरी है। जैसे अंकुश रहित हाथी और लगाम रहित घोड़ा बेकाबू हो जाता है वैसे ही अध्यात्म रहित विज्ञान उच्छृंखल हो जाता है।
एक वैज्ञानिक एल्विन टाॅलफर के ये शब्द कि आज के वैज्ञानिक एक ऐसी रेलगाड़ी में बैठे हैं जिसका एक्सीलेटर तो निरंतर दबता जा रहा है किंतु उसके ब्रेक पर कोई नियंत्रण नहीं है, पता नहीं आगे क्या होने वाला है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि अगर जीवन में सुख और शांति को पाना चाहते हैं तो बिना ब्रेक के विज्ञान पर अध्यात्म का ब्रेक लगाना निहायत जरूरी है।
मुनिश्री ने कहा कि विज्ञान साधन देता है, लेकिन उनका उपयोग किस प्रकार करना होगा यह बतलाना अध्यात्म का कार्य है। विनोबाजी के शब्दों में 'विज्ञान में दोहरी शक्ति होती है एक विकास शक्ति और दूसरी विनाश शक्ति। वह सेवा भी कर सकता है और संहार भी। इसका उपयोग मनुष्य के विवेक पर निर्भर करता है।
उन्होंने कहा कि विज्ञान की निरंकुशता पर अध्यात्म का अंकुश और अध्यात्म को विज्ञान की वैशाखी (सहारा) प्राप्त होना जरूरी है क्योंकि हमें अध्यात्म के नाम पर विक्रम राजा की भांति शव (तथाकथित धार्मिक मूढ़ताएं) कंधे पर लेकर चलने की आदत पड़ गई है। विज्ञान हमारी तथाकथित मूढ़ताओं पर चोट करता है। प्रगति उद्घटित करता है और अध्यात्म, विज्ञान की शक्तियों पर अंकुश रखता है।

  

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