खुरई-संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं, जिसमें कोई न कोई गुण विद्यमान न हो, हमें मात्र उसका अवलोकन करने की जरूरत है। व्यक्ति को अपने गुणों के बखान करने एवं उसको महिमा मंडित करने की चाह प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
इसके विपरीत सामने वाले के बड़े से बड़े गुणों की वह अनदेखी कर देता है। अपना सम्मान तो सभी चाहते हैं, परन्तु दूसरों
का सम्मान होते नहीं देखा जाता। महल हो या झोपड़ी सभी में दरवाजे से ही प्रवेश करना होता है। व्यक्ति को छोटे-बड़े का भेद नहीं करना चाहिए। संसार में जितने भी व्यक्ति हैं अपने पूर्व जन्म के संचित पुण्य से ही सुख-दुख, वैभव, यश-कीर्ति अर्जित करते हैं। जल का प्रवाह भी वहीं रहता है जहां ढाल हुआ करता है। यदि व्यक्ति के मन में जानने सीखने की जिज्ञासा हो तो वह पागल व्यक्ति से कुछ न कुछ सीख सकता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए अाचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने कही।
मंदिर सेठजी का नहीं होता, मंदिर तो त्रिलोकीनाथ का होता है
आचार्यश्री ने कहा कि शरीर की सुंदरता से ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति के गुण एवं चारित्र होता है। हमें पुदगल की सजावट नहीं, अपनी आत्मा का श्रृंगार करना है। दान आदि हमेशा उत्कृष्ट भावना के साथ करें। मंदिर सेठजी या गुरहाजी का नहीं होता, मंदिर तो त्रिलोकीनाथ का ही होता है, जहां श्रावक दर्शन, वंदन, पूजन आदि कर अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त करता है।
सामने वाले व्यक्ति कैसे आकर्षित हों इसके लिए तुमने अब तक तरह- तरह के कार्य किए जिससे लोग तुम्हारे नाम से, तुम्हारे काम से प्रसन्न हों, तुम्हारी प्रशंसा करें यह बहुत कठिन कार्य तुम्हें बहुत सरल लगा तभी तो यह काम एक दो नहीं अनंत जन्मों से किया। पर इसका फल क्या मिला? न ही सामने वाला व्यक्ति तुम्हारा हो पाया न तुम उसके हो पाए। बड़ी भूल तो यह हुई कि पर आकर्षण के कारण पल भर भी तुमने चेतन को तो निहारा ही नहीं, अचेतन देह को सजाते रहे, संवारते रहे अचेतन देह के नाम की प्रसिद्धि बढ़ाते रहे और जब अनेक लोग प्रभावित हुए तो तुम्हें लगा कि जैसे लक्ष्य पूर्ण हो गया।
संकलन अभिषेक जैन लुहड़िया रामगंजमंडी
शरीर की सुंदरता से ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति का गुण, लोगों को बताया जीवन का सच-आचार्यश्री विद्यासागर महाराज
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Friday, January 04, 2019
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