योगेन्द्र जैन शिवपुरी- मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर म.प्र. लेखक संघ ईकाई शिवपुरी द्वारा गीतकार अरूण 'अपेक्षित' के निवास पर कवि गोष्ठी का आयोजन रखा गया। जिसमें मुख्य अतिथि पुरुषोतम गौतम, अध्यक्ष हरी प्रसाद जैन, विशिष्ठ अतिथि इशरत 'ग्वालियरी' तथा विनय प्रकाश 'नीरव' रहे।
गोष्ठी का प्रारंभ मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलित कर मुख्य अतिथि पुरुषोत्तम गौतम द्वारा किया गया। देश के हालातों से क्षुब्ध होकर कवि अरूणेश 'रमन' ने अपने विचार कुछ इस तरह व्यक्त किए-
'वतन के जो दिवाने हैं, सदियों से विचारे हैं।
जवानी झूल गए हसके, स्वप्न अब भी क्वांरे हैं'...
एन.के.शर्मा ने देश के गद्दारों को आड़े हाथों लिया-
'अमर शहीदों के सपनों में था, मेरा देश महान।
मेरे देश में है बेईमानी, हम सबकी खीचातानी'...
बेईमान होकर ईमानदारी का ढिडोरा पीटने वाले लोगों के लिए श्याम बिहारी वर्मा 'सरल' पोहरी ने कहा-
'क्या करोगे सरल इनको, नशीहतें देकर,
ये उसी मुंह से थूककर, फिर चाट लेते हैं'...
नवोदित कवियत्री कु.दिव्या भागवानी ने मुस्कराहट को सर्वोपरि बताया कुछ ऐसे-
'हुनर आंखों से मुस्कराने का हममें आज भी जिंदा है,
हमारी मुस्कान देखकर परेशानियां भी शर्मिंदा हैं..
हास्य-व्यंग के कवि राजकुमार चौहान द्वारा देश के मौकापरस्त स्वार्थी नेताओं के लिए चंद लाइनें पढ़ी गईं-
'मुझको तो तर माल चाहिए, घर में महगा माल चाहिए'...
रामकृष्ण मौर्य ने अपनी गज़ल को तरन्नुम के साथ गाया-
'मुझे आज ज़लवा दिखा दीजिए,
ये दुश्मन है चिल्मन हटा लीजिए...
भगवान सिंह यादव की पीड़ा इन पंक्तियों में दृष्टिगोचर हुई-
'झांककर देखो मेरी आंखों में, ये तुमसे कुछ कह रही हैं,
प्रेम की अथाह गहराई को, आंखों से वयां कर रही हैं..
विगत और वर्तमान कलेण्डर को लेते हुए विनय प्रकाश 'नीरव' की अभिव्यक्ति देखिए-
'सदी की धड़कन लिए बीता समय,
दिन महिने वर्ष सदियां सिर्फ कोशिश हैं,
उन्हें बांधने की...
प्रकाश सेठ का मित्र प्रेम इन पंक्तियों में परिलक्षित हुआ- 'मित्र ने मित्र के लिए पैगाम भेजा'..
राकेश सिंह ने विगत वक्त को दुहराते हुए कहा-
'मुझको इतिहास ये बताता है, हमने वादे सदा निभाए हैं'..
मुल्क को अमन चयन की दुआ करते हुए शायर याकूब साविर ने गज़ल के माध्यम से अर्ज किया-
चाहतें लाजबाव होती हैं, नफरतें तो खराब होती हैं,
किसे गैर समझूं किसे मीत अपना..
मुकेश 'अनुरागी' की कविता ईश्वर को समर्पित रही-
'सांसें जीवन आंख सपन तेरे हैं, पाप-पुण्य सकल फल तेरे हैं'..
माता-पिता के सेवाभाव के लिए समर्पित अरूण अपेक्षित-
'बेटे बहुएं नहीं निरे अभिषाप हैं,
अगर दुखी-लाचार बृद्ध मां-बाप हैं..
इशरत 'ग्वालियरी' का खूबसूरत अंदाज-ए-बयां कुछ इस कदर रहा-
कभी आंगन पकड़ता है कभी कंगन पकड़ते हैं,
मैं जब घर से निकलता हूं कई बंधन पकड़ते हैं..
एकाकी मन से सुहानी शांम का इंतज़ार करते हुए हरी प्रकाश जैन-
इस एकाकी मन-ने जाने कितने ऐसे दिन हैं काटे,
शांम सुहानी आई न अब तक इतने गहरे हैं सन्नाटे..
अंत में गोष्ठी का संचालन कर रहे मुकेश 'अनुरागी' द्वारा आभार व्यक्त किया गया। तथा मुख्य अतिथि के उद्वोधन के साथ गोष्ठी का समापन हुआ।
गोष्ठी का प्रारंभ मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलित कर मुख्य अतिथि पुरुषोत्तम गौतम द्वारा किया गया। देश के हालातों से क्षुब्ध होकर कवि अरूणेश 'रमन' ने अपने विचार कुछ इस तरह व्यक्त किए-
'वतन के जो दिवाने हैं, सदियों से विचारे हैं।
जवानी झूल गए हसके, स्वप्न अब भी क्वांरे हैं'...
एन.के.शर्मा ने देश के गद्दारों को आड़े हाथों लिया-
'अमर शहीदों के सपनों में था, मेरा देश महान।
मेरे देश में है बेईमानी, हम सबकी खीचातानी'...
बेईमान होकर ईमानदारी का ढिडोरा पीटने वाले लोगों के लिए श्याम बिहारी वर्मा 'सरल' पोहरी ने कहा-
'क्या करोगे सरल इनको, नशीहतें देकर,
ये उसी मुंह से थूककर, फिर चाट लेते हैं'...
नवोदित कवियत्री कु.दिव्या भागवानी ने मुस्कराहट को सर्वोपरि बताया कुछ ऐसे-
'हुनर आंखों से मुस्कराने का हममें आज भी जिंदा है,
हमारी मुस्कान देखकर परेशानियां भी शर्मिंदा हैं..
हास्य-व्यंग के कवि राजकुमार चौहान द्वारा देश के मौकापरस्त स्वार्थी नेताओं के लिए चंद लाइनें पढ़ी गईं-
'मुझको तो तर माल चाहिए, घर में महगा माल चाहिए'...
रामकृष्ण मौर्य ने अपनी गज़ल को तरन्नुम के साथ गाया-
'मुझे आज ज़लवा दिखा दीजिए,
ये दुश्मन है चिल्मन हटा लीजिए...
भगवान सिंह यादव की पीड़ा इन पंक्तियों में दृष्टिगोचर हुई-
'झांककर देखो मेरी आंखों में, ये तुमसे कुछ कह रही हैं,
प्रेम की अथाह गहराई को, आंखों से वयां कर रही हैं..
विगत और वर्तमान कलेण्डर को लेते हुए विनय प्रकाश 'नीरव' की अभिव्यक्ति देखिए-
'सदी की धड़कन लिए बीता समय,
दिन महिने वर्ष सदियां सिर्फ कोशिश हैं,
उन्हें बांधने की...
प्रकाश सेठ का मित्र प्रेम इन पंक्तियों में परिलक्षित हुआ- 'मित्र ने मित्र के लिए पैगाम भेजा'..
राकेश सिंह ने विगत वक्त को दुहराते हुए कहा-
'मुझको इतिहास ये बताता है, हमने वादे सदा निभाए हैं'..
मुल्क को अमन चयन की दुआ करते हुए शायर याकूब साविर ने गज़ल के माध्यम से अर्ज किया-
चाहतें लाजबाव होती हैं, नफरतें तो खराब होती हैं,
किसे गैर समझूं किसे मीत अपना..
मुकेश 'अनुरागी' की कविता ईश्वर को समर्पित रही-
'सांसें जीवन आंख सपन तेरे हैं, पाप-पुण्य सकल फल तेरे हैं'..
माता-पिता के सेवाभाव के लिए समर्पित अरूण अपेक्षित-
'बेटे बहुएं नहीं निरे अभिषाप हैं,
अगर दुखी-लाचार बृद्ध मां-बाप हैं..
इशरत 'ग्वालियरी' का खूबसूरत अंदाज-ए-बयां कुछ इस कदर रहा-
कभी आंगन पकड़ता है कभी कंगन पकड़ते हैं,
मैं जब घर से निकलता हूं कई बंधन पकड़ते हैं..
एकाकी मन से सुहानी शांम का इंतज़ार करते हुए हरी प्रकाश जैन-
इस एकाकी मन-ने जाने कितने ऐसे दिन हैं काटे,
शांम सुहानी आई न अब तक इतने गहरे हैं सन्नाटे..
अंत में गोष्ठी का संचालन कर रहे मुकेश 'अनुरागी' द्वारा आभार व्यक्त किया गया। तथा मुख्य अतिथि के उद्वोधन के साथ गोष्ठी का समापन हुआ।
