स्वछंद जिन्दगी तो हर दिन एक नया बसंत : मुनि समता सागरजी



बड़ोदिया-संसार की इस भौतिक सुख सुविधाओं के बीच रहते हुए भी अगर व्यक्ति स्वछंद जिंदगी जीता है तो उसके लिए प्रतिदिन एक नया बसंत है। वह व्यक्ति अपने अच्छे कर्म के माध्यम से सुखद अनुभव करते हुए प्रतिदिन की आबोहवा में प्रकृति के बसंत, प्रकृति के शृंगार का सम्मान करते हुए परोपकार की भावना रखता है, वह व्यक्ति आगे चलकर उच्चता को प्राप्त करता है। यह विचार मुनिश्री समता सागरजी महाराज ने श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बड़ोदिया में ह़ुई धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से बसंत ऋतु में पुराने पत्ते झड़ जाने के साथ नए पत्ते आ जाते हैं, वैसे ही व्यक्ति को पूर्व में जो भी हुए बुरे कार्य उनका त्याग कर नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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