वह घर स्वर्ग, जहां बूढ़े मां-बाप का होता है मान-सम्मान: मुनिश्री

खुरई-प्राचीन जैन मंदिर में मुनिश्री अभयसागर जी  महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि सुना जाता है कि स्वर्ग तो मरने के बाद मिलता है, लेकिन मैं कहता हूं जो घर को स्वर्ग नहीं बना सकता, उसे मरने के बाद भी स्वर्ग नहीं मिलता है। घर को स्वर्ग कैसे बनाएं इसके पहले चिंतन करना होगा कि घर नरक क्यों बनता है।
जब-जब हमारे अंदर क्रोध और अहंकार जन्म लेता है। तब-तब हमारे द्वारा घर नरक बनता और जब प्रेम, क्षमा, दया, सहयोग उत्पन्न होता है उस समय घर स्वर्ग बन जाता है। घर में जब एक-दूसरे का आपस में अपमान करने लगते हैं, तब घर नरक जैसा प्रतीत होने लगता है और जब एक-दूसरे का सम्मान करने लगते हैं तो वही घर स्वर्ग बन जाता है। वह घर स्वर्ग के समान होते हैं, जहां बूढ़े मां-बाप के मान-सम्मान और गौरव का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं। वे घर नरक के समान होते हैं जहां मां-बाप का अपमान किया जाता है। उन्हाेंने कहा कि आप लोगों ने सुना होगा, देखा होगा, अनुभव में भी आया होगा कि आज तक वृक्ष ने डाली को स्वयं से कभी अलग नहीं किया है। हां इतना अवश्य होता है, आंधी-तूफान आने पर या डाली के सूख जाने पर वह स्वतः ही वृक्ष से टूटकर नीचे गिर जाती है।
लेकिन वृक्ष कभी उसे अलग नहीं करना चाहता। ठीक वैसे ही माता-पिता कभी अपनी संतान रूपी डाली को अपने से अलग नहीं करना चाहते। जैसे वृक्ष को कभी टहनी बुरी नहीं लगती वैसे ही शोभा बढ़ती है क्योंकि उसमें फल-फूल लगते हैं। जो टहनी वृक्ष से जुड़ी हुई रस को ग्रहण करती रहती है वह कभी सूखती नहीं है। यहां रस का अर्थ सलाह है जो अपने माता-पिता की सलाह लेते रहते हैं वह कभी दुखी नहीं होते।
         संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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