आचार्य श्री जीवन का एक सच्चा प्रसंग है



एक जैन व्यक्ति अपनी पत्नी और तीन बेटियों के साथ जीवन यापन कर रहा था. कर्म की मार कहें अथवा दुर्भाग्य उनके जीवन में ऐसा समय आया कि पैसे के लिए घर का एक एक  सामान बेचने के नौबत आ गई . घर में आये दुखों से परेशान भेड़ाघाट जल प्रपात से कूदकर अपने जीवन को समाप्त करने की सोच ही रहा था , अंतर्मन से आवाज आई "एक बार मिलोगे नहीं आकर ". घर की सिलाई मशीन बेचने के बाद जेब में १००० rs बचे थे. आचार्यश्री विद्यासागर महाराज उस समय अमरकंटक में थे . ४०० rs खर्च करके आचार्यश्री के दर्शन करने निकल पड़ा . आचार्य श्री से मिलकर उसने अपनी सारी व्यथा बता दी और अपने जीवन को समाप्त करने का मंतव्य भी बता दिया. आचार्य श्री कुछ न बोले लेकिन दूसरे साधु महाराज को बोले इनसे जो नया मंदिर बन रहा है उसमे कुछ दान करने को कहो. बांकी के साधु आश्चर्य चकित रह गए की जिस व्यक्ति के पास खाने के लाले पड़े हो वो दान कहाँ से करे लेकिन आचार्य श्री की बात सभी मानते थे सो उस व्यक्ति को दान करने के लिए बोले . उस व्यक्ति के पास जो आखिरी के ६०० rs बचे थे वो भी उसने दान कर दिए अब बापिस जाने के लिए एक पैसा भी नहीं था . महाराज जी के कहने पर एक श्रावक जो जबलपुर के ही रहने वाले थे उनको अपनी कार में ले गए . उन श्रावक को महाराज जी ने उस व्यक्ति की मनः स्थिति के बारे में बता दिया था . ईमानदार व्यक्ति जानकर श्रावक ने उन्हें अपनी दुकान पर रख लिया और उसकी एक बेटी की शादी करने का भी वचन दिया . जबलपुर आकर बाह व्यक्ति उन श्रावक के यहाँ पर मन लगाकर  काम करने लगा . समय और भाग्य ने साथ दिया और एक दो साल में ही उस व्यक्ति ने खुद की दुकान खोल ली , सभी बेटियों विवाह हो गया . करीब तीन साल बाद आचार्यश्री की सभा में एक व्यक्ति ने ३ लाख रूपए की पाद प्रक्षालन की बोली ली. जैसे ही वह जल से प्रक्षालन करने को हुआ , जल से तो बाद में प्रक्षालन होता आंसू एक एक कर पैरों पर गिरने लगे. आचार्य श्री से वह  व्यक्ति बोला  , आचार्य श्री मैँ  वही हूँ जो तीन साल पहले अपनी जीवन लीला समाप्त करने वाला था और आपके पास आशीर्वाद लेने आया था. एक छोटा सा  मंदिर  के लिए दान कितना सम्बल प्रदान करता है इसका यह जीवंत उदाहरण है. अपन सबको भी ऐसे मौके नहीं चुकने चाइये.

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