पत्रकारिता_का_अधूरा_सच #पांचवे_धड़े_का_गूंगा_पत्रकार!!


राजनीतिक छीछालेदर ने देश में मीडिया को कई धड़ों में बांट दिया है, और अब बड़ी सहजता से मीडिया की नई पौध उनमें से चार मुख्य धड़ों का हिस्सा बनती जा रही है!
लगभग सभी कुटिल राजनेता और कुछ कुटिल पत्रकार, (माफी चाहूंगा गलती से कुटिल लिख गया मेरे लिखने का मतलब वरिष्ठ था) बहरहाल ये कुटिल सॉरी वरिष्ठ अपने तय एजेंडे के तहत सोची समझी योजना के तहत इस अदृश्य लेकिन गंभीर बंटवारे के सूत्रधार हैं!!! 
यह अघोषित बंटवारा लगभग चार धड़ों में कुछ यूं हुआ है कि;
पहला धड़ा सरकार का मीडिया है!!
दूसरा धड़ा भाजपाई मीडिया है!!
तीसरा धड़ा कांग्रेसी मीडिया है!!
चौथा धड़ा गैर हिंदीभाषी राजनीतिक दलों का मीडिया है!!

बहरहाल सरकार किसी की भी हो, बीजेपी, कांग्रेस, टीएमसी, आम आदमी पार्टी, समाजवादी, या अन्य किसी भी राजनीतिक दल की सरकार हो, सवाल ज़बाब किसी को पसंद नहीं है! सरकार किसी भी दल की हो सरकारों का चित्त, चरित्र, कार्य व्यवहार बिल्कुल एक जैसा है! इस मापदंड पर सब दोमुंहे हैं! एक ही राजनीतिक दल किसी राज्य में सत्ता में हैं तो एक मुंह, और विपक्ष में हैं तो दूसरा मुंह!
बाकी दूसरा धड़ा पूरी तरह से भाजपा समर्थक और कांग्रेस एवं अन्य राजनीतिक दलों का विरोधी है!
तीसरा धड़ा कांग्रेस और अन्य दलों का समर्थक और बीजेपी आरएसएस विरोधी है!
चौथा धड़ा प्रादेशिक (लगभग गैर हिंदीभाषी) दलों का समर्थक है अन्य का विरोधी है।

मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया में इन्हीं धड़ों के जुबानी दंगल चल रहे है, भीषण लेखन प्रतियोगिताएं हो रही है।
आम जनता भी धीरे धीरे इस वैचारिक जहर को चाटते चाटते इन मीडियाई धड़ों के माध्यम से यांत्रिक तरीके से राजनीतिक दलों के विरोधी या समर्थक धड़ों का हिस्सा बन रही हैं।
सोशल मीडिया के प्लेटफार्म्स पर, गली, नुक्कड़ चौराहों पर कहीं देश खतरे में हैं, कहीं संविधान खतरे में है, कही ये तुष्टिकरण है, कई बहुसंख्यक की अनदेखी है जैसे तमाम सुलगाए हुए मुद्दों पर चर्चाओं का बाजार गर्म है। इन पर बहस हो रही हैं और सामाजिक विभाजन भी होने लगा है!

बचा बेचारा मैं या मेरे जैसे कुछ अन्य बेचारे जो एक और अन्य पांचवे प्रकार के एकदम नए धड़े में एकदम चुपचाप खड़े हैं, और पक्ष–विपक्ष के, राजनीतिक दलों के समर्थन और विरोध के लिए मची चीख पुकार, जूतम पैजार में मीडिया होने की सच्चाई को समझने की कोशिश कर रहे हैं!

हालांकि कुछ समझ नहीं आ रहा है इसलिए न किसी एजेंडे के समर्थन में हांफ़ रहे हैं, न विरोध में चीख रहे हैं। अभी तक  इतना ही समझ पाए है कि सरकार किसी भी राजनीतिक दल की हो एक जैसी ही होती है!

राष्ट्र, संस्कृति और संविधान के बड़े बड़े भारी भरकम मुद्दों के बीच हम कभी कभार स्कूल, अस्पताल, रोजी रोटी, महगांई, भ्रष्टाचार की टुच्ची समस्याओं को शांति से दिखाकर काम चला लेते हैं! भला राष्ट्र, संविधान, इतिहास, भूगोल जैसे इतने बड़े मुद्दों पर बोलने की समझ विकसित करने के लिए पहले जमीर मारना पड़ेगा सो हम बिना कुछ मारे बेचे चुप है! क्योंकि बोलेंगे! तो ये बोलेगा ये क्यों बोला, वो बोलेगा वो क्यों बोला फिर कोई माईबाप बोलेगा तूने बोला कैसे ???
मैं बोलूंगा तो जो बोल रहे हैं वो भी बोलेंगे कि बोलता है!
इसलिए जब सत्य की कहानी लगे 
तब तो गूंगा ही ज्ञानी लगे!
सो जिसको जो कहना है कहो, मैं गर्व से कहता हूं कि मैं गूंगा हूं पर किसी का अंधभक्त और अंधविरोधी नहीं। इशारे कर सकता हूं सो कर रहा हूं और इशारों को अगर समझो तो फिर राज को राज मत रहने देना!!
सादर मौन सहित,

लेखक 
नवीन पुरोहित बरिष्ठ पत्रकार सस्थापक ind24 न्यूज़ चैनल 

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