डुंगरपुर-प्रगति नगर जिनालय में आचार्य अनुभव सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि लाख बूरा चाहे तो क्या होता है। वही होता है जो अपने कर्म में जुड़ा होता है। आचार्य ने बताया कि हमारे कर्म के अलावा कोई देने वाला नहीं है। वैराग्य अंतरण होना चाहिए। अपना भव सुधार करने हमें आत्मचिंतन करना चाहिए। आचार्य ने मृत्यु के विषय पर कहा कि मृत्यु से डर क्यों होता है। मैं रोग का विषय नहीं तो फिर भी मरण के नाम से पसीने क्यों छूट जाते हैं। सिकंदर का उदाहरण देते हुए कहा कि सिकंदर ने जिस वैभव के लिए, साम्राज्य के लिए कितनी हिंसा की मगर अपने अंतिम समय में उसे ज्ञान प्राप्त हुआ कि मेरे मरने के बाद सब यहीं रह जाएगा। सब कुछ यहीं छोड़कर चला जाना है। अत: हमें अपने स्वयं को पहचान करने की आवश्यकता है। इस छोटे से जीवन में आत्मा कल्याण कैसे करे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी