डूंगरपुर-भगवान महावीर त्याग, समर्पण और सदमार्ग का दूसरा नाम। जैन धर्म में साधुत्व यानी कठिन साधना का पथ। यहीं से संत का संतत्व निखरकर कुंदन बनता हैं। इसी कठिन साधना का एक पथ है केशलोंच। हमारा एक बाल टूटते ही हम कराह टूटते है और बाल तोड़ बीमार कर देता है। वहीं, जैन संत अपने हाथों से न सिर्फ सिर के बाल, अपितु मूंछ और दाढ़ी के बाल भी एक-एक पल भर में तोड़ देते हैं। ऐसा नहीं कि एक एक बार की विधि हैं। साल में तीन से चार बार केशलोंच की परम्परा होती ही हैं। जैन संत अपने हाथों से घास फूस की तरह सिर, दाढ़ी व मूंछ के बाल को आसानी से उखाड़ देते हैं। यह पल देखते ही कई श्रद्धालु भी भाव विभोर हो जाते है। जैन साधु की कठिन तपस्या में केशलोंच भी मूलगुण में शामिल है। बताते हैं कि इससे जैन साधु में शरीर की सुंदरता का मोह खत्म हो जाता है। जैन साधु जब केशलोंच करते है तो आत्मा की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है।अपने आत्म सौंदर्य बढ़ाने के लिए कठिन साधना करते हैं। इससे संयम का पालन भी होता है।
क्या होता केशलोच कैसे होता
आम व्यक्ति भी नहीं लेता है जोखिम
कंडे की राख का होता है उपयोग
जैन साधु सिर, दाढ़ी व मूंछ के बालों को निकालते समय कंडे की राख का उपयोग करते हैं ताकि खून निकलने पर रोग न फैले। पसीने के दौरान हाथ फिसल न जाए। केशलोंच करने के दौरान बालों को हाथों से खींचकर निकाला जाता है। अपने हाथों से बालों को उखाड़कर दिगंबर जैन संत इस बात का परिचय देते है कि जैन धर्म कहने का नहीं सहने का धर्म है।
अपने हाथों से सिर, दाढ़ी व मूंछ के बाल को उखाडऩा का साहस हर कोई नहीं कर सकता है। प्रयास करने पर असहनीय दर्द के चलते आंखों में आंसू जाते हैं। जैन साधु ही इस तपस्या को अनिवार्य रुप से अपनाते हैं। ऐसे में आम व्यक्ति किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लेता है।
साधना शक्ति का परीक्षण है केशलोंच पूज्य सागर जी महाराज
केशलोच उपरांत डुंगरपुर जैन मंदिर मे विराजित पूज्य सागर जी महाराज ने कहा महावीर भगवान कहते हैं कि हाथों से बालों को उखाडऩा शरीर को कष्ट देना नहीं है। बल्कि शरीर की उत्कृष्ट साधना शक्ति का परीक्षण है। इससे कर्मो की निर्जरा होती है। केशलोंच तपस्या का अनिवार्य हिस्सा है।
किसी भी मौसम में खड़े-खड़े ही करते हैं भोजन
बालों को उखाडऩे से बालों में होने वाले जीवों का जो घात हुआ है। उन्हें कष्ट हुआ है उसका प्रायश्चित भी संत करते हैं। आचार्य, उपाध्याय व साधु केशलोंच के दिन उपवास रहते हैं। इस दिन अन्न व जल का ग्रहण नहीं करते हैं। जैन साधु कैसा भी मौसम भी पडग़ाहन के बाद खड़े खड़े ही भोजन करते है। कई साधु केशलोंच के दिन मौन भी रखते हैं।
संकलित अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
क्या होता केशलोच कैसे होता
आम व्यक्ति भी नहीं लेता है जोखिम
कंडे की राख का होता है उपयोग
जैन साधु सिर, दाढ़ी व मूंछ के बालों को निकालते समय कंडे की राख का उपयोग करते हैं ताकि खून निकलने पर रोग न फैले। पसीने के दौरान हाथ फिसल न जाए। केशलोंच करने के दौरान बालों को हाथों से खींचकर निकाला जाता है। अपने हाथों से बालों को उखाड़कर दिगंबर जैन संत इस बात का परिचय देते है कि जैन धर्म कहने का नहीं सहने का धर्म है।
अपने हाथों से सिर, दाढ़ी व मूंछ के बाल को उखाडऩा का साहस हर कोई नहीं कर सकता है। प्रयास करने पर असहनीय दर्द के चलते आंखों में आंसू जाते हैं। जैन साधु ही इस तपस्या को अनिवार्य रुप से अपनाते हैं। ऐसे में आम व्यक्ति किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लेता है।
साधना शक्ति का परीक्षण है केशलोंच पूज्य सागर जी महाराज
केशलोच उपरांत डुंगरपुर जैन मंदिर मे विराजित पूज्य सागर जी महाराज ने कहा महावीर भगवान कहते हैं कि हाथों से बालों को उखाडऩा शरीर को कष्ट देना नहीं है। बल्कि शरीर की उत्कृष्ट साधना शक्ति का परीक्षण है। इससे कर्मो की निर्जरा होती है। केशलोंच तपस्या का अनिवार्य हिस्सा है।
किसी भी मौसम में खड़े-खड़े ही करते हैं भोजन
बालों को उखाडऩे से बालों में होने वाले जीवों का जो घात हुआ है। उन्हें कष्ट हुआ है उसका प्रायश्चित भी संत करते हैं। आचार्य, उपाध्याय व साधु केशलोंच के दिन उपवास रहते हैं। इस दिन अन्न व जल का ग्रहण नहीं करते हैं। जैन साधु कैसा भी मौसम भी पडग़ाहन के बाद खड़े खड़े ही भोजन करते है। कई साधु केशलोंच के दिन मौन भी रखते हैं।
संकलित अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी