ग्वालियर से कांग्रेस चुनाव हारी तो सिंधिया पर फूट सकता है हार का ठीकरा



पोहरी। ग्वालियर संभाग में इस प्रकार से विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को विजय प्राप्त हुई थी उस हिसाव से ग्वालियर लोकसभा सीट से कांग्रेस की जीत की संभावना बढ़ी। ग्वालियर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले विधानसभा सीट पर ज्याददार कांग्रेस विधायक जीतकर विधानसभा गए है।
हालांकि पिछले तीन लोकसभा चुनावों के नजीते पर नजर डाली जाए तो कांग्रेस यहां से लगातार पराजित हो रही थी। यह बात अलग है कि भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार के बीच 26 से 36 हजार मतों का ही अंतर रहा था। लेकिन नवम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ग्वालियर लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर विजय प्राप्त की थी। इनमें शिवपुरी जिले की दो विधानसभा सीटें पोहरी और करैरा भी शामिल थीं। लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस में प्रत्याशी चयन को लेकर जो घमासान हुआ और चुनाव के दौरान जिस तरह से कांग्रेस की गुटबाजी उभरकर सामने आई उससे ग्वालियर लोकसभा सीट पर विधानसभा चुनाव की तुलना में निश्चित रूप से कांग्रेस की हालत कमजोर हुई। कांग्रेस की गुटबाजी को वरिष्ठ भाजपा नेता और इस समय पार्टी के खिलाफ बगावती स्वर धारण किए हुए अनूप मिश्रा ने एक वायरल हुई फोन रिकॉर्डिंग में स्पष्ट रूप से उजागर किया है। उन्होंने साफ साफ कहा है कि मैं तो ग्वालियर में कांग्रेस का काम कर रहा हूं, लेकिन सिंधिया खेमे के लोग अशोक सिंह के प्रचार मेें नहीं जुट रहे हैं। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह की सभा में जिस तरह से रिंकू मावई ने सिंधिया के खिलाफ मोर्चा खोला था उससे भी कांग्रेस की गुटबाजी सतह पर आ गई है। ऐसी स्थिति में यदि ग्वालियर लोकसभा सीट से इस बार कांग्रेस की पराजय होती है तो इसका ठीकरा सासंद सिंधिया पर भी फूट सकता है। सिंधिया समर्थक मंत्रियों और विधायकों पर भी यह आरोप लग रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी का या तो साथ नहीं दिया अथवा प्रचार से दूरी बनाकर रखी। ग्वालियर लोकसभा सीट पर अधिक मतदान से भी कांग्रेस की चिंताएं बढ़ी हैं।
इस बार ग्वालियर लोकसभा सीट पर 60 फीसदी मतदान हुआ जो 2014 की तुलना में लगभग 8 प्रतिशत ज्यादा है। 2014 में जहां 52 फीसदी मतदान हुआ था वहीं इस बार बढ़कर 60  फीसदी मतदान हुआ है, लेकिन इस बढ़े हुए वोटिंग प्रतिशत के बावजूद इलाके के सिंधिया समर्थक मंत्री और विधायक सवालों के घेरे में आ गए हैं। इसके पीछे कारण यह है कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले कांग्रेस के मंत्रियों के इलाकों में वोटिंंग परसेंटेज बढऩे के स्थान पर 5 फीसदी तक कम हुआ है। इनमें मंत्री इमरती देवी, विधायक मुन्नालाल गोयल, प्रद्युम्न तोमर और लाखन सिंह शामिल हैं। इमरती देवी के इलाके डबरा में विधानसभा में 68 फीसदी वोट पड़े वहीं लोकसभा में डबरा में 63 प्रतिशत ही मतदान हुआ। विधायक मुन्नालाल के इलाके में विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा में 4 फीसदी वोट कम पड़े वहां 54 प्रतिशत मतदान हुआ। मंत्री लाखन सिंह की भितरवार सीट पर विधानसभा में 72 फीसदी वोटिंग हुई थी जबकि लोकसभा में 58 फीसदी वोटिंग हुई। मंत्री प्रद्युम्न की ग्वालियर सीट पर लोकसभा में 58 फीसदी वोटिंग हुई जबकि विधानसभा में उनके क्षेत्र में 63 प्रतिशत मतदान हुआ था। ऐसी स्थिति में सिंधिया खेमे के इन मंत्रियों और विधायकों पर दिग्विजय खेमे के कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह के लिए काम न करने के भी आरोप लगे हैं। आरोप है कि जितनी मेहनत मंत्री और विधायकों को जीत के लिए करनी चाहिए थी उतनी उन्होंने नहीं की तथा अपनी अधिकांश सक्रियता सांसद सिंधिया के निर्वाचन क्षेत्र गुना शिवपुरी में लगाई। लेकिन यदि कांग्रेस ग्वालियर सीट जीत गई तो सब सामान्य रहेगा और हार गई तो सीधे मंत्री और विधायकों पर सवाल उठेंगे तथा सिंधिया पर हार का ठीकरा फूटेगा। वोटिंग से पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ पहले ही मंत्री विधायकों को चेतावनी दे चुके हैं।
भाजपा 2007 से जीत रही है ग्वालियर सीट
2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अंतिम बार ग्वालियर से विजयी हुई थी जब यहां से कांग्रेस प्रत्याशी रामसेवक सिंह बाबूजी चुने गए थे, लेकिन इसके बाद 2007 में हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया ने कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह को लाखो मतों से पराजित किया और 2009 के लोकसभा चुनाव मे वह अपने प्रतिद्वंदी अशोक सिंह से जीती तो अवश्य, लेकिन उनकी जीत का अंतर लाखों से घटकर 26 हजार पर आ गया। 2014 की मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह को 29 हजार मतों से पराजित किया। इस बार भाजपा ने जहां विवेक शेजवलकर को उम्मीदवार बनाया है वहीं कांग्रेस ने तीन बार से पराजित हो रहे अशोक सिंह पर दांव खेला है। अशोक सिंह की उम्मीदवारी अंतिम समय पर काफी दिक्कत से तय हुई थी।

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