साधन में सुख नही साधना में सुख है-मुनि विद्या सागर जी महाराज



कोटा (राज) -आर के पुरम श्री 1008 मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन त्रिकाल चोबीसी मंदिर में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुवे विद्या सागर जी महाराज ने कहा कि साधनों में सुख नही साधना में सुख है। भारतीय संस्कृति में  चित्र की नही चारित्र की पूजा आराधना की जाती है। जैन धर्म दर्शन में जितने तीर्थंकर चक्रवर्ती हुवे सभी भवन छोड़कर वन की ओर गमन कर  गए। धन वैभव दौलत सम्पति में सुख का आभास मात्र है। यह वास्तविक सुख नही है ।आत्मीय सुख अविनाशी है शाश्वत है । इन्द्रिय सुख क्षणिक है नाशवान है। विश्व का प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है दुख से डरता है । सुख राग ओर द्वेष में नही है । सूख केवल वीतरागता में है।*मानव जीवन चिन्तामणि रत्न के समान मिला है । इसके एक एक पल का सदुपयोग करे। सदैव सकारात्मक रहे ।*
*धर्मसभा का सफल संचालन राकेश जैन एवम पारस जैन पार्श्वमणि ने किया  । धर्मसभा के प्रारंभ में मंगलाचरण पाठ हुआ।*
*मंदिर समिति के अध्यक्ष जिनेद्र जैन वरमुंडा महामंत्री राजेश जैन खटोड़ ने बताया कि धर्मसभा मे चित्र अनावरण शास्त्र भेट की मांगलिक क्रियाऐ भो की गई। प्रचार प्रसारमंत्री पारस जैन पार्श्वमणि ने वताया की प्रातःकाल मंगलाष्टक पाठ के बाद अभिषेक एवम विश्व शांति की मंगलभावना से शांतिधारा की गई।*
*मुनि श्री ने अपनी ओजस्वी वाणी ने कहा कि इंडिया शब्द अग्रेजो का दिया हुआ है इसका अर्थ गुलाम ओर अपराधी के लये किया जाता है।मुगलो ने हिन्दुस्तान नाम दिया।  यह राजा भरत का भारत है। कहा भी भरत चक्रवर्ती का भारत देश महान ।जो साधना में जीते है वो हैं भारत ।जो साधनों में जीते है वो है इंडिया ।इसलिए भारत ही नाम ठीक है। धर्मसभा मे सूरजमल जैन चन्द्रेश जैन ललित जैन विमल चंद जैन ज्ञान चन्द जैन नहेंद्र जैन पवन पाटौदी  पी सी जैन अमोलक चन्द जैन राजवीर गंगवाल विवेक जैन संजीव जैन उपस्थित थे।
राष्ट्रीय संवाददाता पारस जैन "पार्श्वमणि पत्रकार

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