पार्टी को समझ आने लगे शिवराज सिंह



राजनीतिक हलचल-कल तक मोदी - शाह के अप्रत्यक्ष निर्देश थे कि शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में राजनीति न करें। इसलिए उन्हें भाजपा सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय संयोजक  बनाया गया था , ताकि देशभर में उनका प्रवास हो। लेकिन अब प्रदेश भाजपा के विधायकों में फूट से केन्द्रीय नेतृत्व सन्न रह गया।  उसने तत्काल शिवराज को दिल्ली बुलाया  और उन्हें असंतुष्ठों को साधने का जिम्मा सौंपा।
भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल के विधानसभा में सत्तारूढ़ कांग्रेस द्वारा लाए गए विधेयक के समर्थन में वोट देने और अपनी ही भाजपा के खिलाफ बयानबाजी करने के बाद कुछ और विपक्षी विधायक भी मुख्यमंत्री कमलनाथ के सम्पर्क में हैं। इन अप्रत्याशित सूचनाओं  ने भाजपा के राज्य नेतृत्व राकेश सिंह(प्रदेश अध्यक्ष) और गोपाल भार्गव (नेता प्रतिपक्ष)  की संंगठन क्षमता की पोल खोल कर   रख दी है। इन दो-तीन दिनों में यह खुलासा भी हुआ है कि भाजपा विधायकों का एक समूह नेता प्रतिपक्ष भार्गव की कार्यप्रणाली से नाखुश है। पार्टी विरोधी इस घटनाक्रम की सीधे तौर पर  जिम्मेदारी शिवराज सिंह चौहान की तो बनती नहीं है।  वह राज्य भाजपा  मेें किसी पद पर हैं भी नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री हैं और सामान्य विधायक हैं।
हां , अब जरूर शिवराज का राजनैतिक व संगठनात्मक महत्व दिल्ली नेतृत्व को नजर आ रहा है। वर्ना ,केन्द्रीय नेता राकेश सिंह, गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा और केैलाश विजयवर्गीय को  ही  बागी विधायकों  से संवाद करने की जिम्मेदारी सौंपते।
यदि शिवराज बागी विधायकों  को पुन: भाजपा के अनुशासन के दायरे में ले जाते हैं तो न केवल शिवराज की नेतृत्व क्षमता साबित होगी, बल्कि केन्द्रीय नेतृत्व भी उन्हें प्रदेश से बाहर भेजने की योजना में ढील दे सकता है।

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