सागर -भगवान श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था, उसे उन्होंने अपने पिता की आज्ञा मानते हुए सहर्ष स्वीकार किया। तो क्या हम 21 दिन को खुद घर में नहीं रख सकते? सरकार ने जब लॉकडाउन सबके लिए किया है आप सभी को भी उनकी बात को मानना चाहिए। इच्छा शक्ति मजबूत हो तब यह संकल्प हम प्राप्त कर सकते हैं। संकल्प से ही सिद्धि होती है बगैर संकल्प के नहीं। यह बात मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने मंगलवार को भाग्योदय तीर्थ में ऑनलाइन शंका समाधान करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में भी संकट आए हैं फिर भी उन्होंने शांति के साथ सामंजस्य बनाकर उसे जीता है।विपदाओं को सहन करने की क्षमता सभी में होना चाहिए। समय के साथ क्रियाओं में परिवर्तन होना चाहिए लेकिन क्रियाओं के मूल में ही परिवर्तन हो यह उचित नहीं है। जैसे एक समय मुनि-महाराज वनों में, नदियों के तट पर रहते थे लेकिन अब मुनि-महाराज गांव और शहरों में रहने लगे हैं। एक समय का भोजन कर पैदल विहार करते हैं, उनकी क्षमता है। यही मूल है।धर्म हमारे हाथ से अटकना नहीं चाहिए। शरीर की प्रति रोधात्मक क्षमता बढ़ाने में हमारा भोजन सात्विक होना चाहिए। जो हमारे शरीर के लिए उपयोगी हो। भावनाओं का जीवन में बड़ा संबंध है। ईर्ष्या, अवसाद आदि से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। भावना योग करने वालों को धीरे-धीरे दवाइयां कम हो जाती हैं और किसी-किसी की तो बंद भी हो जाती हैं। यदि भोजन किया है तो भजन भी करना चाहिए और वह भी अच्छी भावना के साथ।
भोजन आदि बांटने के फोटो सोशल मीडिया पर डालना सही, क्योंकि दूसरे भी इससे प्रेरणा लेते हैं : मुनिश्री ने कहा कि गरीबों को भोजन देना बहुत उत्तम कार्य है और जो लोग भोजन कराने के साथ उनके साथ फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया आदि पर देते हैं वह ठीक है। क्योंकि उसे देख करके दूसरों के मन में भी इस प्रकार के कार्य करने की ललक पैदा होती है और यह बात अलग है कि कुछ लोग इसके लिए दिखावा करते हैं वह गलत है एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा अंदर से स्वीकार करना सबके बस की बात नहीं है। खुद की नहीं लोग दूसरे की मौत चाहते हैं। अपनी मौत के बारे में कहते हैं कि हम सबसे बाद में मरेंगे। जबकि मरना परम सत्य है। जब चाहे मौत के गले लगे लेकिन जब मौत की घड़ी आए तो उस स्थिति परिस्थिति में भगवान को सुमरने में पीछे नहीं रहना चाहिए।
जीविका के लिए पहले लोग शहरों की ओर जाते थे, अब घर वापसी हो रही है : मुनिश्री ने कहा जीविका के लिए लोग पहले गांव से शहरों की ओर भागे थे लेकिन अब घर वापसी हो रही है। मनुष्य कितनी भी ऊंचाइयों पर पहुंचे साधन सुविधाएं मिलें लेकिन अध्यात्म ही उसके लिए सब कुछ होता है। जीवन का आनंद लेना है तो उसे अंतर मुख होना पड़ेगा। तामसी भोजन करने से बुद्धि निर्मल नहीं होती है। यह वायरस भारत से पैदा नहीं हुआ है। यहां से हमेशा करुणा के वायरस पैदा हुए हैं और वह ही निकलेंगे। शांति और सद्भाव भारत में है चीन में तानाशाही है। उन्होंने कहा कि घर हो या मंदिर सभी जगह आप के भाव हमेशा निर्मल होना चाहिए। मंदिर और पूजा स्थान हमारे हैं और हमें ही इनके प्रति सोचना होगा। जिन स्थानों पर पुलिस ने तालाबंदी की है उनके ट्रस्टों और अध्यक्षों की प्रतिष्ठा कुछ कम हुई है। हमें अनुकूलता देखकर के कार्य करना चाहिए यही समझदारी का कार्य है। मंदिरों में भीड़ लगाने से समस्याएं आएंगी अपने मन को मंदिर बनाने का कार्य सबसे उत्तम है।
महावीर जयंती पर 24-24 लोगों भोजन कराएं, उनकी मदद करें
मुनिश्री ने कहा कि लॉकडाउन के बाद जब बाजार खुलेंगे तो भी अभावग्रस्तओं को हमें चिन्हित करके उनकी मदद करना होगी। महावीर जयंती करुणा दिवस के रूप में भी मनेगी। 6 अप्रैल को महावीर जयंती कोराना दिवस नहीं बल्कि करुणा दिवस के रूप में मनाई जाएगी। हम सभी 24-24 लोगों को सहयोग करें भोजन कराएं, यही सच्ची महावीर जयंती होगी। लॉकडाउन का समय मौज करने का समय नहीं है। आप एक सब्जी खा कर के जीवन व्यतीत करें। बदली हुई सोच भी एक प्रकार से मन की साधना है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी