कोराेना वायरस से लड़ने में दिन रात जुटे कर्मचारियों पर थूकने वाले मानवता के विध्वंसक हैं: मुनिश्री

 सागर-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना वायरस को लेकर इतनी सतर्कता बरत रहे हैं। लगातार लोगों से संवाद कर रहे हैं। मुख्यमंत्रियों तक को धर्मगुरुओं से चर्चा करने के निर्देश दे रहे हैं। इसके बाद भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस महामारी से लड़ने में दिन रात एक कर रहे हैं अधिकारी-कर्मचारियों पर थूक रहे हैं। ऐसे लोग मानवता के विध्वंसक हैं। आज संयम रखने का समय है। लेकिन आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं इस पर जरूर गहराई से जाना होगा। यह बात भाग्योदय तीर्थ में विराजमान मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने शुक्रवार को ऑनलाइन शंका समाधान में कही।
उन्होंने कहा धर्म के अभाव में मनुष्य पशु समान है। धर्म को ही मनुष्य को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। मनुष्य को धर्म से जोड़ने में उनके माता पिता और शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षक स्वयं संस्कारी हो और मूल्यों के प्रति निष्ठा रखने वाला हो। आप संतान का पालन नहीं करें बल्कि संतान का निर्माण करें। यदि आप संस्कार बच्चों में नहीं डालते हैं तो अपने जीवन को आप स्वयं खराब कर रहे हैं। शिक्षक अध्ययन के साथ-साथ सीख दें तो उचित होगा। मां-बाप में धर्म तथा शिक्षक के पास सीख देने के संस्कार सबसे उचित होते हैं। मुनिश्री ने कहा जिस तरह तीर्थंकरों के जन्म के समय तीनों लोको में आनंद की अनुभूति होती है। जो लोग हृदय में तीर्थंकरों को रखेंगे उन्हें हमेशा आनंद की अनुभूति होगी। महावीर जयंती पर भी आप सभी लोग अपने हृदय में तीर्थंकर विराजमान करेंगे तो आपको एक अलग अनुभूति प्राप्त होगी।
सोशल मीडिया के उपयोग के संदर्भ में उन्होंने कहा इसका एक समय निश्चित होना चाहिए। जो लोग मोबाइल के शिकार हैं उनको कुछ ऐसी कहानियां सुनाइए जिससे उन्हें इसकी हानि का पता चले और अगर नहीं सुधरे तो उन्हें गुरुजनों के पास ले जाएं तब जाकर उनमें सुधार होगा। मुनिश्री ने कहा मूल्य में ह्रास हो रहा है। पहले घरों में कौटुंबिक जीवन होता था अब एकल परिवार हो गए हैं। उनके बच्चे भी बाहर रहने लगे हैं बच्चे जो चाहते हैं उन्हें आप स्वयं उदाहरण दें। अपने पिता की सेवा करें और विनम्रता के साथ उनसे व्यवहार करें यही काम आपका बेटा भी करेगा। आप अपने पिता की अगर उपेक्षा करेंगे तो आपके बच्चे में भी वही संस्कार पड़ जाएंगे जो आदर्श आपका है वही बच्चों का होना चाहिए। बदलते परिवेश में बुजुर्गों को अपनी इच्छाएं कम करना चाहिए और आत्म कल्याण का रास्ता पकड़ना चाहिए। जिससे परिवार में किसी प्रकार से कोई कलह नहीं हो। 
भावना योग से पूरे देश का आत्मविश्वास बढ़ा है
मुनिश्री ने कहा पुनर्जन्म को जैन धर्म में मान्यता है आत्मा को ही परमात्मा माना गया है। अपने विकारों को दूर कर आत्मा को परमात्मा बनाया जा सकता है। पूर्व जन्मों की स्मृति कभी कभार आ जाती है तो उस समय वह व्यक्ति उसको दोहराता है। उन्होंने कहा कि भावना योग से पूरे देश का आत्मविश्वास बढ़ गया है। आपदा के समय लोग संल्लेखना की बातें कर रहे हैं तो यह बहुत गंभीर है। मैं भावना भाता हूं पूरे विश्व में कम से कम लोग इस महामारी में पीड़ित हों। यदि कोई पीड़ित हो जाए जिसका उपचार संभव नहीं है तो अपने आसक्ति के अनुसार उसे दूर करें। सब प्रकार के आहार, पानी का त्याग करें। सभी को एक दिन जाना है। सब प्रकार के भय अवसाद चिंता को त्याग करें यह एक बड़ी साधना होगी। रोते कराहते हुए अपना शरीर नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि प्रभु को स्मरण करते हुए अपना शरीर छोड़ने की भावना भाना चाहिए।
वर्तमान की स्थिति में संतोष रखो तो सदा सुखी रहोगे : मुनिश्री ने कहा वर्तमान की स्थितियों में संतोष रखें तो आप हमेशा सुखी रहेंगे। फिल्म बनाते समय फिल्म में जो लड़ाई होती है उसका उद्देश्य लड़ाई नहीं बल्कि फिल्म को जीवंत बनाना और उसका संदेश आमजन तक देना होता है। रामायण में बहुत सारी चीजें और दृश्य ऐसे हैं उनके यदि कृत्य को आप पकड़ोगे तो जीवन में बहुत आनन्द की प्राप्ति होगी। हिंसा और अश्लीलता वाली फिल्मों को देखना भी पाप है और ऐसी फिल्में बनाने वाले भी पापी हैं।
नियमित बागवानी से क्रोध खत्म होता है :
 नियमित बागवानी करने से व्यक्ति का क्रोध लगभग समाप्त हो जाता है। इसमें हिंसा होती है लेकिन गृहस्थ अवस्था में इसे रोका भी नहीं जा सकता। मैं ज्योतिष पर विश्वास करता हूं पर ज्योतिषियों पर नहीं। कोई भी अमर नहीं है जब जाना होगा वह जाएगा। टोना टोटका से किसी की मृत्यु को टाला नहीं जा सकता है।
                 संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी

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