बांसवाड़ा-कॉमर्शियल कॉलोनी में स्थित संत भवन में आचार्य अनुभव सागरजी महाराज ने अपने प्रवचनों के माध्यम से बताया कि आज आधुनिक शिक्षा प्रणाली के दुष्प्रभाव हर ओर देखने को मिलते हैं। जिस देश में ज्ञान को सरस्वती की संज्ञा दी जाती हो उस देश में आज शिक्षा पध्दति बस अर्थ उपार्जन का माध्यम बन कर रह गई है। आज बच्चे प्रतियोगिताओं में उतरने के लिए पढ़ रहे हैं। आचार्य जी ने कहा कि ज्ञान अर्जन का कोई मूल्य नहीं, लेकिन उस ज्ञान से हम कितना पैकेज प्राप्त कर पाते हैं यह ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। आचार्य ने एक वृद्धा और राजा की बहुत सुंदर कथा सुनाते हुए कहा कि अंधी वृद्धा ने सैनिक सेनापति और महाराज तीनों को उनके बोलने की शैली से पहचान लिया था। हमारे शब्द ही हमारा परिचय बना करते हैं। हम जो सोचते हैं, विचार करते हैं, वहीं हमारे शब्द बन जाते हैं। हमारे शब्द ही हमारा व्यवहार आचरण बन जाते हैं। हमारा आचरण ही हमारा भविष्य बनता है। आचार्य जी ने कहा कि बालक पैदा होने के कुछ समय बाद ही बोलना शुरू कर देता है, मगर क्या बोलना, कब बोलना, कितना बोलना, क्यों बोलना ओर कैसे बोलना यह सीखते सीखते सारी उम्र गुजर जाती है। बच्चों को सुविधाएं अवश्य देना चाहिए, लेकिन कहीं यही सुविधाएं उनके लिए अभिशाप न बन जाए। अपने बच्चों को लाड़ प्यार और सुविधाएं देकर सर्कस का शेर न बनाएं। हमें संदेश दिया कि अपने सुख, साधन, शरीर, ज्ञान, रुप, यौवन, प्रसिद्धि इनका कभी अभिमान नहीं करना चाहिए।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
